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। अष्टपाहुड
दुबिहं संजमचरणं सायारं तह हवे णिरायारं। सायारं 'सग्गंथे परिग्गहा रहिय खलु णिरायारं।। २१।।
द्विविधं संयमचरणं सागारं तथा भवेत् निरागारं। सागारं सग्रन्थे परिग्रहाद्रहिते खलु निरागारम्।। २१ ।।
अर्थ:--संयमाचरण चारित्र दो प्रकार का है--सागार और निरागार। सागार तो परिग्रह सहित श्रावकके होता है और निरागार परिग्रहसे रहित मुनिके होता है यह निश्चय है।। २१।।
आगे सागार संयामाचरण को कहते हैं:--
दसण वय सामाइय पोसह सचित्त रायभत्ते य। बंभारंभ परिग्गह अणुमण उद्दिट्ट देसविरदो य।। २२।।
दर्शनं व्रतं सामायिक प्रोषधं सचित्तं रात्रिभुक्तिश्व । ब्रह्म आरंभः परिग्रहः अनुमतिः उद्दिष्ट देशविरतश्च ।। २२।।
अर्थ:--दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध आदिका नाम एकदेश है, और नाम ऐसे कहे हैं--प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभक्तित्याग, ब्रह्मचर्य, आरंभत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग, इसप्रकार ग्यारह प्रकार देशविरत है।
भावार्थ:--ये सागार संयामाचरण के ग्यारह स्थान हैं, इनको प्रतिमा भी कहते हैं।।२२।।
आगे इन स्थानोंमें संयमका आचरण किस प्रकार से है वह कहते हैं:--
१ पाठान्तरः - सग्गंथं
सागार-अण-आगार अम द्विभेद संयमचरण छे; सागार छ 'सग्रंथ, अण-आगार परिग्रहरहित छ। २१ ।
दर्शन, व्रतं सामायिकं, प्रोषध, सचित, निशिभुक्तिने, वळी ब्रह्म ने आरंभ आदिक देशविरतिस्थान छ। २२।
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