Book Title: Ashtapahuda
Author(s): Kundkundacharya, Mahendramuni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 403
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates शीलपाहुड] [३७९ मनुष्यों में दुःखों को पाते हैं और देवों में उत्पन्न हों तो वहाँ भी दुभारुग्यपना पाते हैं, नीच देव होते हैं, इसप्रकार चारों गतियों में दुःख ही पाते हैं। भावार्थ:--विषयासक्त जीवों को कहीं भी सुख नहीं है, परलोक में तो नरक आदि के दुःख पाते ही हैं परन्तु इस लोक में भी इनके देवन करने में आपत्ति व कष्ट आते ही हैं तथा सेवन से आकुलता दुःख ही है, यह जीव भ्रम से सुख मानता है, सत्यार्थ ज्ञानी तो विरक्त ही होता है।। २३ ।। आगे कहते हैं कि विषयों को छोड़ने से कुछ भी हानि नहीं है:-- तुसधम्मंतबलेण य जह दव्वं ण हि णराण गच्छेदि। तवसीलमंत कुसली खवंति विसयं विस व खलं।। २४ ।। तुषधमबलेन च यथा द्रव्यं न हि नराणां गच्छति। तपः शीलमंतः कुशलाः क्षिपंते विषयं विषमिव खलं।। २४ ।। अर्थ:--जैसे तुषों के चलाने से, उड़ाने से मनुष्य का कुछ द्रव्य नहीं जाता है, वैसे ही तपस्वी और शीलवान परुष विषयोंको खलकी तरह क्षेपते हैं, दूर फेंक देते हैं। भावार्थ:--जो ज्ञानी तप शील सहित है उनके इन्द्रियों के विषय खल की तरह हैं, जैसे ईखका रस निकाल लेने के बाद खल-चूसे नीरस हो जाते हैं तब वे फेंक देने योग्य ही हैं, वैसे ही विषयों को जानना। रस था वह तो ज्ञानियों ने जान लिया तब विषय तो खल के समान रहे, उनके त्यागने में क्या हानि ? अर्थात् कुछ भी नहीं है। उन ज्ञानियों को धन्य है जो विषयों को ज्ञेयमात्र जानकर आसक्त नहीं होते हैं। जो आसक्त होते हैं वे तो अज्ञानी ही हैं। क्योंकि विषय तो जड़ पदार्थ है सुख तो उनको जानने से ज्ञान में ही था, अज्ञानी ने आसक्त होकर विषयों में सुख माना। जैसे श्वान सूखी हड्डी चबाता है तब हड्डी की नोक मुखके तलवे में चुभती है, इससे तलवा फट जाता है और उसमें से खून बहने लगता है, तब अज्ञानी श्वान जानता है कि यह रस हड्डी में से निकला है और उस हड्डी को बार बार चबा कर सुख मानता है; वैसे ही अज्ञानी विषयों में सुख मानकर बार बार भोगता है, परन्तु ज्ञानियों ने अपने ज्ञान में ही सुख जाना है, उनको विषयों के त्याग में दुःख नहीं है, ऐसे जानना।। २४ ।। तुष दूर करतां जे रीते कई द्रव्य नरनुं न जाय छे, तप शीलवंत सुकुशल खल माफक, विषयविषने तजे। २४ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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