Book Title: Ashtapahuda
Author(s): Kundkundacharya, Mahendramuni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 417
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates शीलपाहुड] [३९३ * छप्पन * जिनदर्शन निग्रंथरूप तत्त्वारथ धारन, सूनरजिनके वचन सार चारित व्रत पारन। बोधजैन का जानि आनका सरन निवारन, भाव आत्मा बुद्ध मानि भावन शिव कारन। फुनि मोक्ष कर्मका नाश है लिंग सुधारन तजि कुनय। धरि शील स्वभाव संवारना आठ पाहुडका फल सुजय।। * दोहा * भई वचनिका यह जहाँ सुनो तास संक्षेप। भव्यजीव संगति भली मेटै कुकरमलेप।। २।। जयपुर पुर सुवस वसै तहाँ राज जगतेश। लाके न्याय प्रतापतें सुखी ढुद्राहर देश।। ३।। जैनधर्म जयवंत जग किछु जयपुरमैं लेश। तामधि जिनमंदिर घणे तिनको भलो निवेश।। ४ ।। तिनिमैं तेरापंथको मंदिर सुन्दर एव। धर्मध्यान तामैं सदा जैनी करै सुसेव।। ५।। पंडित तिनिमें बहुत हैं मैं भी इक जयचंद। प्रेा सबकै मन कियो करन वचनिका मंद।। ६।। कुन्दकुन्द मुनिराजकृत प्राकृत गाथासार। पाहुड अष्ट उदार लखि करी वचनिका तार।। ७।। इहाँ जिते पंडित हुते तिनिनैं सोधी येह। अक्षर अर्थ सु वांचि पढ़ि नहिं राखयो संदेह।। ८ ।। तौऊ कछू प्रमादतै बुद्धि मंद परभाव। हीनाधिक कछु अर्थ है सोधो बुध सतभाव।। ९ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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