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/ अष्टपाहुड राजा उग्रसेनकी रानी पद्मावती के गर्भमें आया, मास पुरे होने पर जन्म लिया तब इसको क्रूर दृष्टि देखकर काँसीके संदूक में रक्खा और वृत्तान्तके लेख सहित यमुना नदीमें बहा दिया। कौशाम्बीपुर में मंदोदरी नामकी कलाली ने उसको लेकर पुत्रबुद्धिसे पालन किया, कंस नाम रखा। जब वह बड़ा हुआ तो बालकोंके साथ खेलते समय सबको दुःख देने लगा, तब मंदोदरी ने उलाहनोंके दुःख से इसको निकाल दिया। फिर यह कंस शौर्यपुर गया वहाँ वसुदेव राजा के पयादा (सेवक) बनकर रहा। पीछे जरासिंध प्रतिनारायण का पत्र आया कि जो पोदनपुर के राजा सिंहरथको बाँध लावे उसको आधे राज्य सहित पुत्री विवाहित कर दूँ। तब वसुदेव वहाँ कंस सहित जाकर युद्ध करके उस सिंहरथ को बाँध लाया, जरासिंधको सौंप दिया। फिर जरासिंधने जीवंशया पुत्री सहित आधा राज्य दिया, तब वसुदेव ने कहासिंहरथको कंस बाँधकर लाया है, इसको दो। फिर जरासिंध ने इसका कुल जानने के लिये मंदोदरी को बुला कर कुलका निश्चय करके इसको जीवंशया ब्याह दी; तब कंस ने मथुरा का राज्य लेकर पिता उग्रसेन राजा को और पद्मावती माता को बंदीखाने में डाल दिया, पीछे कृष्ण नारायणसे मृत्युको प्राप्त हुआ। इसकी कथा विस्तार पूर्वक उत्तर पुराणादि से जानिये। इसप्रकार विशष्ठ मुनिने निदानसे सिद्धिको नहीं पाई, इसलिये भावलिंगहीसे सिद्धि है।। ४६ ।।
आगे कहते हैं कि भावरहित चौरासी लाख योनियोंमें भ्रमण करता है:--
सो णत्थि तप्पएसो चउरासी लक्ख जोणिवासम्मि। भावविरओ वि सवणो जत्थ ण दुरुदुल्लिओ जीव।। ४७।।
सः नास्ति तं प्रदेश: चतुरशीतिलक्षयोनिवासे। भावविरतः अपि श्रमण: यत्र न भ्रमितः 'जीवः।। ४७।।
अर्थ:-इस संसारमें चौरासीलाख योनि, उनके निवास में ऐसा कोई देश नहीं है जिसमें इस जीवने द्रव्यलिंगी मुनि होकर भी भावरहित होता हुआ भ्रमण नहीं किया हो।
१ पाठान्तर :-जीवो।
अवो न कोई प्रदेश लख चोराशी योनिनिवासमां, रे! भावविरहित श्रमण पण परिभ्रमणने पाम्यो न ज्यां। ४७।
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