Book Title: Ashtapahuda
Author(s): Kundkundacharya, Mahendramuni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 324
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ३००] [अष्टपाहुड मयमायकोहरहिओ लोहेण विवज्जिओ य जो जीवो। णिम्मलसहावजुत्तो सो पावइ उत्तमं सोक्खं ।। ४५।। मदमायाक्रोधरहितः लोभेन विवर्जितश्च यः जीवः। निर्मलस्वभावयुक्तः सः प्राप्नोति उत्तमं सौख्यम्।। ४५।। अर्थ:--जो जीव मद, माया, क्रोध इनसे रहित हो और लोभसे विशेषरूपसे रहित हो वह जीव निर्मल विशुद्ध स्वभावयुक्त होकर उत्तम सुखको प्राप्त करता है। भावार्थ:--लोकमें भी ऐसा है कि जो मद अर्थात् अति मानी तथा माया कपट और क्रोध इनसे रहित हो और लोभसे विशेष रहित हो वह सुख पाता है; तएव कषायी अति आकुलतायुक्त होकर निरन्तर दुःखी रहता है। अतः यही रीति मोक्षमार्ग में भी जानो-जो क्रोध, मान, माया, लोभ चार कषायोंसे रहित होता है तब निर्मल भाव होते हैं और तब ही यथाख्यातचारित्र पाकर उत्तम सुखको प्राप्त करता है।। ४५।।। आगे कहते हैं कि जो विषय-कषायों में आसक्त है, परमात्माकी भावना से रहित है, रौद्रपरिणामी है वह जिनमतसे पराङमुख है, अत: वह मोक्ष के सुखोंको प्राप्त नहीं कर सकता:--- विसयकसाएहि जुदो रुद्दो परमप्पभावरहियमणो। सो ण लहइ सिद्धिसुहं जिणमुद्दपरम्मुहो जीवो।। ४६ ।। विषयकषायैः युक्त: रुद्रः परमात्मभावरहितमनाः। सः न लभते सिद्धिसुखं जिनमुद्रापराङ्मुखः जीवः।। ४६ ।। अर्थ:--जो जीव विषय-कषायपंसे युक्त है, रौद्रपरिणामी है, हिंसादिक विषयकषायदिक पापों में हर्ष सहित प्रवृत्ति करता है और जिसका चित्त परमात्माकी भावना से रहित है, ऐसा जीव जिनमुद्रा से पराङमुख है वह ऐसे सिद्धिसुखको मोक्षके सुखको प्राप्त नहीं कर सकता। --------- जे जीव माया-क्रोध-मद परिवर्जीने, तजी लोभने, निर्मळ स्वभावे परिणमे, ते सौख्य उत्तमने लहे। ४५ । परमात्मभावनहीन रूद्र, कषायविषये युक्त जे, ते जीव जिनमुद्राविमुख पामे नहीं शिवसौख्यने। ४६ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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