Book Title: Ashtapahuda
Author(s): Kundkundacharya, Mahendramuni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 386
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ३६२] । अष्टपाहुड * छप्पन * लिंग मुनीको धारि पाप जो भाव बिगाडै वह निंदाकू पाय आपको अहित विथा। ताकू पूजै थुवै वंदना करै जु कोई वे भी तैसे होई साथि दुरगतिकू लेई।। ईससे जे सांचे मुनि भये भाव शुद्धिमैं थिर रहे। तिनि उपदेश्या मारग लगे ते सांचे ज्ञानी कहे।। १।। * दोहा आंतर बाह्य जु शुद्ध जिनमुद्राकू धारि। भये सिद्ध आनंदमय बंदू जोग संवारि।। २।। इति श्री कुन्दकुन्दाचार्यस्वामि विरचित श्री लिंगप्राभृत शास्त्रकी जयपुरनिवासी पं० जयचन्द्रजी छाबड़ाकृत देशभाषामय वचनिका का हिन्दी भाषानुवाद समाप्त।। ७।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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