Book Title: Ashtapahuda
Author(s): Kundkundacharya, Mahendramuni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 400
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ३७६ ] [अष्टपाहुड परन्तु जिनमें शील सुशील है, स्वभाव उत्तम है, कषायादिक की आसक्तता नहीं है उनका मनुष्यपना सुजीवित है, जीना अच्छा है। भावार्थ:--लोक में सब सामग्री से जो न्यून है परन्तु स्वभाव उत्तम है, विषयकषयों में आसक्त नहीं है तो वे उत्तम ही हैं, उनका मनुष्यभव सफल है, उनका जीवन प्रशंसा के योग्य है।। १८ ।। आगे कहते हैं कि जितने भी भले कार्य हैं वे सब शील के परिवार हैं:--- जीवदया दम सच्चं अचोरियं बंभचेर संतोसे। सम्मइंसण णाणं तओय सीलस्स परिवारो।।१९।। जीवदया दमः सत्यं अचौर्य ब्रह्मचर्य संतोषौ। सम्यग्दर्शन ज्ञान तपश्य शीलस्य परिवारः।। १९ ।। अर्थ:---जीव दया, इन्द्रियों का दमन, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, संतोष, सम्यग्दर्शन, ज्ञान, तप---ये सब शील के परिवार हैं। भावार्थ:--शीलस्वभाव का तथा प्रकृति का नाम प्रसिद्ध है। मिथ्यात्व सहित कषयरूप ज्ञानकी परिणति तो दुःशील है, इसको संसारप्रकृति कहते हैं, यह प्रकृति पलटे और सम्यक् प्रकृति हो वह सुशील है, इसको मोक्षसन्मुख प्रकृति कहते हैं। ऐसे सुशील के 'जीवदयादिक' गाथा में कहे वे सब ही परिवार हैं, क्योंकि संसारप्रकृति पलटे तब संसार देह से वैराग्य हो और मोक्ष से अनुराग हो तब ही सम्यग्दर्शनादिक परिणाम हों, फिर जितनी प्रकृति हो वह सब मोक्षके सन्मुख हो, यही सुशील है। जिसके संसारका अंत आता है उसके यह प्रकृति होती है और यह प्रकृति न हो तब तक संसार भ्रमण ही है, ऐसे जानना।। १९ ।। आगे शील ही तप आदिक है ऐसे शीलकी महिमा कहते हैं:--- प्राणीदया, दम, सत्य, ब्रह्म अचौर्य ने संतुष्टता, सम्यक्त्व, ज्ञान तपश्चरण छे शीलना परिवारमा। १९ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418