Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 12
________________ ॥अनुभवप्रकाश ॥ पान १०॥ . है मति फिरै यहांत । तीसरी गुफा है, तहां वसे है। हाथकी डोरी इस गुफातक आई है। है है सो यह डोरी उसके हाथकी हलाई हाले है । जो वह न होय तो डोरी आपसैं न हाले है है है । तातें विचारि इस शक्ति या डोरीकी अनसूत चली जाना। कर्ममें देखि इसकी । क्रिया डोरीकौं कौन हलावै है ? द्रव्यकर्मगुफा अंदरी प्रकृति प्रदेश स्थिति अनुभाग है है वाहीके निमित्ततें नाव पऱ्या है। वाकी परिणति भई जैसी जैसी वर्गणा बंधी वहांभी है है उसकी वणाई सत्तासौं द्रव्यकर्म नाव उसके भावोंके निमित्त” नानाकर्मपुद्गलनैं नाव है है पाया । भावकर्मगुफामै राग द्वेष मोहका प्रकाशमैं छिप्या स्वरूप रहे है । वह प्रकाश तेरे है हैं नाथका अशुद्ध स्वांग है । तामैं तू खोजि, भय मति करै । निःशंक जानि यह राग है है द्वेष मोहकी डोरीके साथि जाइ खोजि, जिस प्रदेश” उठी सोही तेरा नाथ है । डोरीकौं । है मति देखे । जिसके हाथमें डोरी तिसकौं लगि तुरति मिलैगा। अपनी ज्ञानमहिमाको । है छिपाय बैठा है। तू पिछानि । यह गुप्तज्ञान भया तौऊ नाथ छिप्या नहीं। चेतना

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