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॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान २५ ॥ अभाव न कहै। व्यवहारमैंहू यह रीति है। छतैकौं अनछतो न करै । चिदानन्द है तेरौ अचिरज आवतु है । दर्शनज्ञानशक्ति छती करि अनछती राखी है। जैसे है हैं लोटनजडीकौं (जटामांसी जिसको बिल्लीलोटन कहते हैं ) देखि बिल्ली लोटे है, तैसें है हैं मोहते संसारभ्रमण है । नै कहूं इतें स्वरूपमें आवै तो त्रिलोकको राज्य पावै । सो तो है १ दर्लभ नाहीं ॥ जैसे नर पशुस्वांग धरै तौ पशु न होय, नरही है । तैसैं आत्मा चौरा-है है सीके स्वांग करै तौऊ चिदानंदही है। चिदानंदपणो दुर्लभ नाहीं ॥ जैसे कोई काठकी है है पूतरीकौं सांची नारी मानि वाको बुलावै, चाहि करें, वाकी सेवा करै, पी, जान है
काठकी, तब पछितावै । तैसें जडकी सेवा करै है । अज्ञानी भया जडमैं सुख कल्पै है।। ज्ञानी होय जब झूठ मानि तजै॥ है जैसैं मृग मरीचिकामै जल माने है, तैसैं परमैं आपा मान है । तातें सांचे है ज्ञानतें वस्तु जानौ तबही भ्रम मिटै । वारंवार सार सांचो उपदेश श्रीगुरु कहै हैं।
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