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॥ अनुभवप्रकाश || पान ६३ ॥
ज्ञान पाईये, तातैं जघन्यज्ञान साधक उत्कृष्टज्ञान साध्य है । जहां ज्ञान स्तोकादि निश्रय करै, तहां वह निश्चय बढै । जैसैं स्तोक अमल है चाहि लीन अमल बहुत वढै, बहुत निश्चय परिणतिरूप ज्ञानादि गुण बढे, सो साध्य है । सम्यक्त्वी जीव दर्शनज्ञानचारित्रकौं साधै, तातैं सम्यक्त्व ज्ञान दर्शन चारित्र साध्य हैं । सम्यक्त्व साधक है । सम्यक्त्वज्ञानादि भाव शुद्ध होय जब द्रव्यकर्म मिटै, तब द्रव्यमोक्ष होय, तातैं गुणमोक्ष साधक, द्रव्यमोक्ष साध्य है । क्षपकश्रेणी चढै जब तद्भवमोक्ष होय, तातैं क्षपकश्रेणी चढना साधक है, तद्भवमोक्ष साध्य है । दरवितलिंग होय, भावित स्वरूपभाव भाव होय, तब साक्षात् मोक्ष सधै, तातैं दरवित भावित यति व्यवहार साधक है, तहां साक्षान्मोक्ष साध्य है । भावितमनके विकार विलय भये साक्षान्मोक्ष होय ता भावित मनादिरीति विलय साधक है, साक्षान्मोक्षरूप साध्य है |
जहां पौगलिक कर्म खिरणा साधक है, काहेतैं ? पुद्गलकर्म विपाक आये मनो