Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 84
________________ ॥अनुभवप्रकाश ॥ पान ८२॥ उदिते गभस्तिमालिनि किं न विनश्यति तमो नैश्यम् ॥ १॥ कोई प्रश्न करै--वस्तु देखिये नाही जानिये नाही परिणाम वामैं कैसे दीजिये? है है ताको समाधान-- पर दीखता है जानिये है सो परका देखनेवाला उपयोग है तो है १ देखै है, ज्ञान है तो जान है । उपयोग तौ ठावा (?) भया नास्तिरूप हुवा, जो । है यह उपयोगे गहखां तिसहीमैं परिणाम धरि थिरता धरि आचरण करि विश्राम गहूं। है है येताही परिणाम शुद्ध करनेका काम है। उक्तं च- “उववोगमई जीवो” इतिवचनात् है है जातें परिणाम वस्तु वेद्यस्वरूपलाभ ले, वस्तुमैं लीन होय है । स्वरूपनिवास परिणाम है है ही करै हैं । उत्पाद व्यय ध्रुव परिणाममें आया, उत्पादव्ययध्रुवमैं सत् भया । सत् है है तामें स्वरूप सब आया, तातें परिणामशुद्धतामैं सव शुद्धता आई ॥ उक्तं च जीवो परिणामयदा सुहेण असुहेण चासुहो असुहो। सुद्धेण तदा सुद्धो परिणामो होदि सब्भावो ॥ New

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