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॥ अनुभवप्रकाश || पान ८४ ॥
॥ आगे देवाधिकार लिखिये हैं ॥
का देवतें परममंगलरूप निजानुभव पाईये हैं । तातैं देव उपकारी हैं । देव परमात्मा है । अरहंत परमात्मा साकार है | शरीरयुक्त हैं । तातैं सिद्ध निराकार हैं। किंचून चरमशरीरतें आकार तातें साकार भी कहिये हैं । अरहंत कै अघातिकर्म रहे तातैं बाह्य विवक्षा मैं च्यारि गुण व्यक्त न भये । ज्ञानमें सब व्यक्त भये । सो कहिये हैं । नामकर्म मनुष्य गतिरूप है । तातैं सूक्ष्म बाह्य नहीं । केवलज्ञान मैं व्यक्त है । वेदनी है तातें बाह्य अबाधित नहीं । अंतरमैं ज्ञानमें व्यक्त है । अवगाह बाह्य नहीं । आपतें ज्ञानमें व्यक्त है । अगुरुलघुगोत्रतैं बाह्य व्यक्त नहीं, ज्ञानमैं है । यह अघातिहू व्यक्त नाव न पाया। नामस्थापनाद्रव्यभाव पूज्य हैं अरहंत के नाम लेतही परमपदकी प्राप्ति होई ॥ उक्तं च
जिन सुमरो जिन चिंतवो जिन ध्यावो सुमनेन ॥