Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 105
________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान १०३ ॥ 1 समाधि तौ प्रथम ध्यान भये होय है । सो ध्यान चिन्तानिरोध एकाग्र भये होय है । सो चिन्तानिरोधं रागद्वेष के मिटें होय हैं । सो राग द्वेष इष्ट अनिष्ट समाज मिटे, मिटे है । तातें जीव जे समाधिवांछक हैं, ते इष्ट अनिष्टका समागम मेटि रागद्वेप त्यागि चिंता मेटि ध्यान में मन धरि थिरत्व स्वरूपमैं समाधि लगाई निजानन्द भेटौ स्वरूपमैं वीतरागतात ज्ञानभाव होय तब समाधि उपजै । वह अपने स्वरूपमैं मन लीन करे | द्रव्यगुणपर्याय मैं परिणाम लीन लय समाधि ऐसी होय है || इन्द्रादि संपदाके भोग रोगवत भासै । द्रव्य द्रवणतैं नाम पाईये है । गुणकौं द्रवै सो द्रवत्वलक्षण परिणाममैं तातें गुणद्रव्य मैं परिणाम लीन होय । गुणद्रव्य मैं द्रवत्व लक्षण है । तौ परिणामसौं द्रव्य गुण मिलि गये तातैं द्रव्यत्वकी एकोदेशता साधककै ऐसी भई जो परीषह अनेककी वेदनां न वेदे हैं । रसास्वादमैं लीन आनंदरस तृप्ति भया । जब मन परमेश्वरमैं मिलै लीन होय न निकसै परमानंद वेदै स्वरूप धारणा ॥ ·

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