Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 103
________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान १०१॥ स्वरूप चिदानंद अनादिका है, सो ज्यौंका सौं बण्या है। कछु घट्या बढ्या नाहीं है भरमकल्पनाते स्वरूप भुल्या है। परहीको आपा मान्या तौ कहा भया ॥ जैसे कोई चिंतामणि करविर्षे भूलि काचखण्डकौं रतन मांनि चलावै तौ वह है रतन न होय, चिंतामणिको काच जानें, तो काच न होय, चिंतामणिपणा न जाय। है तैसैं आतमाकौं पर जानें तौ पर न होय । परकौं आपा जानैं तो आपा न होय ।। है वस्तु अपने स्वभावका त्यजन काहू काल न करै । वस्तु वस्तुत्वकौं न तजै । अपने है हैं द्रव्यकौं न तजै । अपने प्रमाणकौं न तजै । अपने प्रदेशकौं न तजै । इत्यादि भावकों है है न तजै। तातैं अनादि प्रदेशप्रमाणकौं न तजै । शुद्ध अशुद्ध दोऊ अवस्थामैं अपनी है द्रव्य क्षेत्र काल भावकी दशा न तजै । महिमा अनंत अमिट है । काहूंपै न मैटी जाय। हैं निश्चयकरि जो है सो है। तातै निजवस्तुका श्रद्धान ज्ञानादि अनंतगुणमात्र जांनि है है अनंतसुख करै, तो सुखी होय । उपायतै उपेय पाइये है । सो उपेय आनंदघन पर है

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