Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 101
________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ९९ ॥ - जैसें काहूनें कोई एक ज्ञानवान पुरुषकों पूछा- हमकौं शुद्धचेतनकी प्राप्ति है बताओ ॥ तब ता पुरुषनें कह्या एक अमुका ज्ञानवान है तापासि जावो, तुमकौं । है वो बतावैगा, प्राप्ति करैगा । तब वो गयो । जाय, प्रश्न कियो-हमकू चेतनकी प्राप्ति । है करौ। तब तासौ कह्यौ, जु तुम एक दरियावमैं मछ रहै है, तासमीप जावो । तुमकौं है है वो मछ चैतन्यप्राप्ति करैगो । तब वाके उपदेशसौं वो नर ता मछसमीप गयो, जाय । है प्रश्न कीयो, हमको शुद्धचैतन्यकी प्राप्ति करौ। तब मछ ऐसौ वचन कह्यौ, हमारौ है एक काम है, सो पहलै करो, तो पीछं तुमकौं चिदानंदमैं लीन करै । तुम बड़े संत है हौ, हमारो कार्य काहूनैं अबतक न कीयो, तुम पराक्रमी दीसौ हौ । तात यह है है नियम है, हमारो काज कीयां, अवश्य तुमारो काज करेंगे । ठीक जानौं तब वो है पुरुष बोल्यौ, तुमारो कारिज करौंगौ संदेह नाहीं करौ । तब मछ. वासौं कह्यौ, हम बहोत दिनके तिसाये या दरियावमें रहे हैं। हमारी तृषा न गई । पाणीको जोग न है ANAND

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