Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 104
________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान, १०२ ॥ मातमा परमेश्वर है । ताकौ उपाय यातें करणौ, जु, संसारअवस्था ही शरीर में कर्मबंधतें गुप्त भयो परभावना दुःखी भयौ अपनौं परमेश्वरपद न पायो । ताकौ उपाय होय तौ उपेय पाइये, सो उपाय कहिये हैं ।।. उपाय अपने स्वरूप पावनेका अपनां उपयोग है । और उपाय तप जप संयमादि शुभ हैं। जिनमें परमात्माकी भक्ति शुभपरि प्रतीतितैं कारणभी है । कारण ध्यान कार्यकी सिद्धि है । ग्रन्थ उपदेशभी कारण है । परि उपभोग आये शुद्ध है । तातें उपयोग की एकोदेश शुद्धकी चढनि ज्यौंज्यों होय त्यौंत्यों मोक्षमार्गको चढे ॥ यह श्रीजिनेंद्र भगवानका निरावाध उपदेश है । सकल उपाधि अनादितें लगी आई । जब उपयोग कर समाधि लागै, साक्षात् शिवपन्थ सुगम होय । अनेक संत स्वरूपसमाधि धरि धरि पार भये ॥ ॥ अव कछुक समाधिवर्णन कीजिये हैं ||

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