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॥अनुभवप्रकाश ॥ पान ८७ ॥
मय नग योग लि मूसिमैं जार स अंबर होय । पुरुषाकार ज्ञानमय वस्तु प्रमानौं सोय ॥ देवकों जानै तब स्वरूप अनुभव होय है। इति देवाधिकार ।
. ॥ अथ ज्ञानाधिकारः ॥ ज्ञान लोकालोक सकलज्ञेयकौं जानें निश्चय जाननरूप स्वरूप है ऐसी है है ज्ञानकी शक्ति है । संसार अवस्थामैं अज्ञानरूप भई है। तौऊ निश्चय निज शक्ति है न जाय है । बादरघटाके आवरण” सूर्यतेज न जाय, सौ ज्ञानावरण” ज्ञान न जाय
आवस्या जाय नाश न होय । ज्ञान सव गुणमैं वडा गुण है। इसमें अनंतगुण व्यक्त जानें ॥ ज्ञानविना ज्ञेय न जान्या पस्या । ज्ञेयविना जानवा योग्य कछु भी न होता यातें ज्ञान प्रधान है । अनंतगुणात्मवस्तु तौऊ ज्ञानमात्र ही है। आचार्य बहु है ग्रन्थनमें आतमा ऐसौ कह्यौ । काहेरौं “लक्षणप्रसिद्धया लक्ष्यप्रसिद्धयर्थम् ” जैसे है