Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 90
________________ ॥ अनुभवप्रकाश || पान ८८ ॥ मन्दिर श्वेत कहिये मन्दिर श्वेतादि बहुगुण घेरे हैं । तथापि दूरितें श्वेतगुणकरि भासै तातें मुख्यतातें श्वेत मन्दिर कहिये । प्रसिद्ध लक्षण आतमामें ज्ञान है, तातें ज्ञानमात्र आतमा कह्यौ । एक एक गुणकी अनंत शक्ति अनंतपर्याय गुणकी एक अनेक भेदादि सब जाने, ज्ञानविना वस्तुसर्वस्व निर्णयरूप स्वरूपकूं न जानें, तातैं ज्ञान प्रधान है । मतिज्ञानादि ज्ञानके पर्याय हैं । सो क्षयोपशम ज्ञान अंश भेद शुद्ध भये । तातैं पर्याय लोकालोक जानैं ज्ञेयाकार ज्ञानपर्यायकरि है । ज्ञेय नाश होत परि ज्ञाननाश नाहीं तातें जेतो ज्ञेय तेतौ ज्ञान मेचक उपयोगलक्षण ज्ञान उपचारतें ज्ञानमें ज्ञेय है । तातें वस्तुस्वरूपमैं ज्ञेयकै विनाशता, ज्ञानविनाश नाहीं ॥ कोई तर्क करे - ज्ञान में सकलज्ञेय उपचारतें हैं । तौ सर्वज्ञपद उपचरित भयो उपचार झूठ है । तो कहा सर्वज्ञपद झूठ भयो ? ताको समाधान --जाकै उपचारहीमात्र लोकालोक भास्यौ तौ वाकै निश्चयज्ञानकी महिमा कौंन कहै ? यह ज्ञान

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