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॥अनुभवप्रकाश ॥ पान ६४॥ है विकार उपजे है, ता” पुद्गलही सिरि जाय, तव मनोविकार कहांतें रहै ? तातै मनोई विकारविलय हवना साध्य है, कर्म खिरणा साधक है। परमाणुमात्रभी परिग्रह होय है है तौ ममताभाव होयही होय, तातें परमाणुमात्र परिग्रह साधक है, ममताभाव साध्य है। १ मिथ्यात्वते संसार भ्रमै , मिथ्यात्व साधक, संसारभ्रमण साध्य है। सम्यक्त्व भये मोक्ष है है होय, तातें सम्यक्त्व साधक है, मोक्ष होना साध्य हैं। जैसी काललब्धि आवै, तैसीही है १ स्वभावसिद्धि होय, तात काललब्धि साधक है, तैसाही स्वभाव हवना साध्य है। है १ साधकसाध्यभेद अनेक हैं, सो जाननै ।।
शब साधक है, अर्थ साध्य है । अर्थ साधक है, ज्ञानरस साध्य है। स्थिरता है साधक है, ध्यान साध्य है। ध्यान साधक है, कर्म क्षरणा साध्य है। कर्म क्षरणा, हैं साधक है, द्रव्यमोक्ष साध्य है । राग-द्वेष-मोह अभाव साधक है, संसाराभाव साध्य । है है । धर्म साधक है, परमपद साध्य है । स्वविचारप्रतीतिरूप साधक है, अनाकुलभाव है