Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 63
________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ६१॥ चेतना प्रगट अनन्तयण प्रगट तिनकी पूजा सेवा मनसौं परिपूर्ण प्रीति बाह्य प्रभावना अन्तरङ्ग ध्यान गुणवर्णन अवज्ञा अभाव परमउत्साह मन वच काय धन सर्व भक्तिनिमित्त लगावै, अपने प्राणहूर्त वल्लभ प्राण दुःखमूल जानै, उनकौं अनन्तसुखकारण जानै, शुद्धस्वरूप जानि भक्ति करै, शुद्धस्वरूप अभिलाषी आप यातें उनकी भक्ति है रुचि श्रद्धा प्रतीतिते करै, शास्त्रकी भक्ति करै । काहेत ? अपनौ स्वरूप शास्त्र पावै । ई है । संसारदुःखहानि स्वरूपभावनाते होय , सो पावै । स्वपरविवेक ग्रन्थ प्रगटैं। मोक्ष- १ ई मार्ग मोक्षस्वरूप वाणीतै लहै । तातें शास्त्रभक्ति कही । गुरु मोक्षमार्ग उपदेशै, शान्त- है है मुद्रा धारी गुरु, मुद्रा विनावचन बोल्याही मोक्षमार्ग दिखावै । ऐसे श्रीगुरु सर्वदोपर-, है हित तिनकी भक्ति कही । इनकी भक्ति करै, मुक्तिके ये कारण जानि करै । तव भव- है १ भोगसौं उदास होय मन स्वरूपहीकी स्थिरता चाहै, तब साधै । तातें उनकी भक्ति है १ साधक है, मनकी स्थिरता साध्य है ।।।

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