Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 31
________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान'२९॥ ..' १ दूजो नही, आपहीकी भूलि झूठी, तातें आप दुःख पावै है। दुजो मानि मानि है है दुःख पावे है। सांच जानै सदा सुखी होईयै ॥ यह आत्मा सुखके निमित्त अनेक है है उपाय करे है । देश देश फिरै, लक्ष्मी कमाय सुख भोगवै । अथवा परीषह अनेक हैं सहै, परलोक सुखनिमित्तका निधान निजस्वरूपको न जानै । जानै तो तुरत है सुखी होय ॥ जैसैं सब जनकी गांठडीमें लाल हैं, वै सब मसकती होय रहे हैं। जो गठडी ई खोलि देखै, तौ सुखी होय । अन्धले तो कूपमैं परै अचिरज नहीं। देखता परै तो है है अचिरज । तैसें आत्मा ज्ञाता द्रष्टा है, अरु संसारकूपमै परै है, यह वडा अचिरज है। है मोह ठगर्ने ठगोरी इसके सिर डारी, तिसत परघरहीकौं आपा मानि निजघर भूल्या है, ३ ज्ञानमन्त्र" मोह ठगोरीनें उतारै, तब निजघरकौं पावै । वारवार श्रीगुरु निजघर पाय- है वेको उपाय दिखावै है। अपने अखण्डित उपयोगनिधानकौं ले अविनाशी राज्य है

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