Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 32
________________ .. ' ' .. .... ॥ अनुभवप्रकाश ।। पान ३०॥ . . है करि । तेरी हरामजादगीते अपना राजपद भूलि कौडी कौडीकौं जांच कंगाल भया । है है । तेरा निधान ढिगही था, तें न संभाल्या । तातें दुःखी भया ॥ है जैसे चांपा. ( नामका ) गवाल धतूरैकों पीय उन्मत्त भया मैं चांपा नाही, है १चांपाके घर पीछे ठाढा होय हेला दीया, चांपा घरि है? तब उसकी नारीनें कह्या, तूं। है कौन है ? तव चेत भया मै चांपा हौं । तैसैं श्रीगुरु आपा बताया है। पावै ते सुखी है होय । कहांलौं कहिये ? यह माहिमानिधान अम्लान अनूपपद आप वण्या है, सहज इ १. सुखकन्द है, अलख अखण्डित है, अमिततेजधारी है ॥ दुःखद्धन्दमैं आपा मानि ई 'अति आनन्द मानि रह्या है । अनादिहीका सो यह दुःखकी मूल भूलि जवही मिटै, है है श्रीगुरुवचन सुधारस पीवै । चेत होय परकी ओर अवलोकन मिटै । स्वरूप स्वपद है .देखतही तिहूं लोकनाथ अपना पद जानै । विख्यात वेद वतावै हैं ।। नटवा स्वांग धरे नांचे है । स्वांग न धरै पररूप नाचना मिटै। ममत्वतें पररूप

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