Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 37
________________ ॥अनुभवप्रकाश ॥ पान ३५ ॥ र्शनज्ञानचारित्र मोक्षमार्ग कह्या । इनकी जेती जेती विशुद्धि होत भई, तेता है मोक्षमार्ग भया ॥ निश्चयमोक्षमार्ग दोयप्रकार, सविकल्प निर्विकल्प । मै “अहं ब्रह्म अस्मि" ऐसा है भाव आवै निर्विकल्प वीतराग स्वसंवेदन समाधि कहिये । लोकालोक जाननेकी शक्ति है है ज्ञानकी, स्वसंवेदन जेता भया, तामें स्वज्ञानविशुद्धताके अंश होत भये । सो ज्ञान है है सर्वज्ञशक्ति में अनुभव कीया। जेता ज्ञान भया शुद्ध, तेता अनुभवमैं सर्वज्ञानकी, है प्रतीतिभाव वेदना ऐसा भया । सर्वज्ञानका प्रतीतिभावमें आनन्द बढ्या । ज्ञान विमल है है अधिक होत भया । ज्ञानकी विशुद्धताकौं ज्ञानके बलका प्रतीतिभाव कारण है । ज्ञान, है परोक्ष है । परपरिणतिके बल आवरणके होतेभी उस स्वसंवेदनमैं स्वजातिक सुख भया. है ज्ञानस्वरूपका भया । एकदेश स्वसंवेदन सर्व स्वसंवेदनका अङ्ग है । ज्ञानवेदनामैं वेद्या है है जाय है साक्षात् मोक्षमार्ग है । स्वसंवेदन ज्ञानीही जान है । स्वरूपते परिणाम वारै भया, है MAAM NNNN

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