Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

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Page 38
________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ३६ ॥ है सोही संसारस्वरूपाचरणरूप परिणाम सोही साधक अवस्थामैं मोक्षमार्ग, सिद्धि अव-ई है स्थामैं मोक्षरूप है। जेता जेता अंश ज्ञानबलते आवरण अभाव भया, तेता तेता अंश मोक्ष है ईनाम पाया। स्वरूपकी वार्ता प्रीतिकरि सुणै, तौ भावी मुक्ति कही । अनुपम सुख है हैं होय अनुभव करै, तिनिकी महिमा कौन कहि सकै? है जेता स्वरूपका निश्चय ठीक भावै, तेता स्वसंवेदन होय एक भये, तीनौंकी है हैं सिद्धि है । गुप्त शुद्धशक्ति सिद्धिसमानमैं परिणति प्रवेश करै । ज्यौं ज्यौं शुद्धताकी है प्रतीतिमैं परिणति थिर होय, त्यौं त्यौं मोक्षमार्गकी शुद्धि होय । ज्यौं कोई अधिक है कोस चालै तब नगर नजीक आवै, त्यौं शुद्धस्वरूपकी प्रतीतिमैं परिणति अवगाढ है गाढ दृढ होय , मोक्षनगर नजीक आवै । अपनी परिणति खेल आप करि आप भव१ सिन्धुर्ते पार होय । आप विभावपरिणतिनै संसार विषम करि राख्या है। संसार है है मोक्षकी करणहारी परिणति है । निजपरिणति मोक्ष, परपरिणति संसार । सो यह सत्स है Ammam

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