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॥अनुभवप्रकाश ॥ पान ५८ ॥ द्रव्य अपने शुद्धत्व जैसा स्वरूप है , तैसैंकौं लीयै । पर्याय जैसा कबु परिणम-है है नरूप स्वभाव है, तैसैंकों लीयै। ऐसे द्रव्यगुणयर्यायका स्वभाव जाति सब सिद्ध हवना है है सम्यग्भाव है । तातें सम्यग्भाव साधक है । वस्तुस्वभाव जातिसिद्ध हवना साध्य है, है है शुद्धोपयोगपरिणति साधक है । परमात्मा साध्य है, सो कहूंत शुद्धोपयोगस्वभावसङ्गत है हे होय है। ज्ञानदर्शन तो साधक । तातें सब रूप शुद्धोपयोग, चारित्ररूप शुद्धोपयोग, है है सो ज्ञानदर्शन तो साधक, तातें सब शुद्ध नाहीं । केतेक शक्तिकरि शुद्ध है। चारित्रहैं गुण वास्मैके ठिकाने सव शुद्ध हैं । परि परम यथाख्यात तेरमैं चौदमैमैं नाव पावै है । है है तातें केतेक ज्ञानशक्ति शुद्ध भई । ता ज्ञानशक्तिकरि केवलज्ञानरूप गुप्त निजरूप ताकौं है है प्रतीति व्यक्ति करि, तव परिणतिनैं केवलज्ञान• प्रतीति रुचि श्रद्धाभावकरि निश्चय है १ कीया। गुप्तका व्यक्तश्रद्धानतें व्यक्त होय जाय है ॥ । एकदेशस्वरूपमें शुद्धत्व सर्वदेशकौं साधे है । शुद्धनिश्चयकरि शुद्धस्वरूप जान्या है