________________
॥ अनुभवप्रकाश || पान ११ ॥ ..
प्रकाशरूप चिदानन्द राजा पाय सुख पावैगी। निजशर्मका उपाय कह्या । यह निजसुख उपयोग का । दुर्लभ क्यों भया है ? सो कहिये हैं |
यह परिणाम भूमिका मैं मोहमदिरा पीय अविवेक मल्ल उन्मत्त होय विवेकमल्लको जीति जयथंभ रोपि ठाढा ( खडा ) भया है जोरावर । तातें आपकी सुखनिधिका विलास न कर दे । विवेकमल्लका जोरा भये अविवेक हण्या जाय । तव निज निधि विलसिये । पररुचि खोटा आहार सेवतैं मिथ्याज्वर भई । तब विवेक निर्बल भया । तातैं स्वआचार पारा श्रद्धा बूटीके पुटसों सुधाय । ताका सेवन करे, तत्र विवेकमल्ल मिथ्याज्वर मेटि सबल होय अविवेककौं पछारे । तव आनन्द निधिका विलास होय । स्वआचार कहा || श्रद्धा कैसे हो सो कहिये हैं ||
इस अनादिसंसार में परविचार अनादि कीया। अब स्वआचार पारा सेवन करिये तौ, अविनाशी पद
मेरी ज्ञानचेतना अशुद्ध भई । भेटियै । मैं कौन हौं ? मेरा