Book Title: Anubhav Prakash
Author(s): Lakhmichand Venichand
Publisher: Lakhmichand Venichand

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान २१॥ . । परिणाम जातें उठ्या तामें परिणाम लगावै । ज्ञानवारै परिणाम न करै । परिणाम , है रङ्गचेतना अङ्ग अभङ्गमैं अन्तरङ्ग लीन भया करै । अमरपुरीनिवास निजबोधके विका-३ सते व्है । निश्चय निश्चल अमल अतुल अखण्डित अमिततेज अनन्तगुणरत्नमण्डित । ब्रह्माण्डको लखैया । ब्रह्मपद पूर्ण परमचैतन्यज्योतिःस्वरूप अरूप अनुप त्रैलोक्यभूप है है परमात्मरूप पद पाय पावन होय रहै । सो अनुभवकी महिमा है ॥ यथार्थज्ञान, परमार्थनिधान , निजकल्याण, शिवस्थानरूप भगवान् अम्लानसुखवान निर्वाणनिधि निरुपाधि निजसमाधि साधिये आराधिये । अलख अज आनन्द है महागुणवृन्द धारी अवकारी सर्व दुःखहारी वाधारहित महित सुरस रससहित निरंशी कर्मको है है विध्वंसी, भव्यको आधार, भवपारको करणहार, जगत्सार, दुर्निवाग्दुःख चूरै । पूरै है पद आप भवताप पुण्यपापकौं मिटायकैं, लखाय पद आतम दरसाय देत चिदानन्द, हैं सदा सुखकन्द निरफंद लखावै, अविनाशी पद पावै, लोकालोक झलकावै, फेरि

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122