Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ दि / / वाङ्मावतो भवेत् / श्लिष्टतामुभयो—यात्तयोगः सार्थको मुखे // 15 // अतीन्द्रियाणामर्थानां, शिष्टानां स्वल्प-11 आगमो- वेदिभिः / न प्रामाण्यं ततो वाच्यं, सर्व तिह्यमादितः // 16 // आनन्तर्येण परतो, द्विधा फलप्रदर्शनात् / मङ्गलाद्धारक- योगस्य वाच्यताऽऽयम्भे-ऽन्यथोत्कृष्टे फलेऽत्ययः // 17 // न चेत्साध्यमुदीर्येत, विभिन्नरुचयो जनाः / स्वेष्टसिकृति द्वयै क्षमं मत्वा, कुर्युः किं श्रुतियोजनाः ? // 18 // मते जैने प्यनेकानि, तत्त्वानि स्वेष्टसिद्धये / तद्वाच्यमादितो विचारः सन्दोहे वाच्यं, श्रोतृणां बुद्धिशुद्धये // 19 // शास्त्रकारा महात्मानो, भाषन्ते वितथं नहि / क्वचित्तदन्यथाभावे नाविश्रम्भो / महात्मसु // 20 // प्रतिशास्त्रमुदीर्यन्ते, चत्वार्येतानि सूरिभिः / कृतिक्रममपेक्षन्ते, श्रोतारो नापि देशकाः // 21 // मङ्गले विहिते ज्ञात्रा,सामर्थ्यात् शेषमूह्यते / तथापि स्पष्टबोधार्थ, शेषत्रयप्रसाधनम् // 22 // श्रोतृणां न समा M बुद्धिः, समेषां कर्मणां यतः / शमश्चित्रस्ततःसर्वे, नैवं चिन्तयितुं क्षमाः // 23 // कर्ता श्रोता च जैनोऽत्र, न च स्वच्छन्दवाक्पदं / भवानुवन्धं ब्रूयान्न, न चैकनयसंश्रितम् // 24 // क्वचिद् शास्त्रकृतो ग्रन्थे, लक्षीकृत्य बुधान् परान् / आचख्युर्मङ्गलं ह्येकं, शेपजिज्ञापयिषया // 25 // जिनेन्द्रा देशनारम्भे, कृतार्था अपि पर्षदि / लोकप्रवृत्तये ख्यान्ति, तीर्थाय नम इत्यपि // 26 // वक्ता जिनो गणाधाराः, श्रोतारो वीजबुद्धयः / शासनोदितये ब्रूते, वस्तु सर्वनयाश्रितम् // 27 // श्रुतं भगवता ख्यात-मित्यूचाना गणाधिपाः / मङ्गलं चक्रिरे स्पष्ट, I निष्ठास्थेमाव्ययप्रदम् // 28 // परमेष्ठिनमस्कार आद्यावश्यकदेशने / सुकर्तव्यतयाऽवश्यं, नियुक्तौ देशितस्ततः // 29 // शेषेष्वावश्यकेश्वेवं, सूत्रेषु क्रियते बुधैः / मङ्गलस्य कृतिः कार्या, ध्रुवं तन्नात्र संशयः // 30 // आद्याङ्गचूर्णिकृत्पाह, श्रुतं मे प्रमुखं वचः / अधिकारतया तस्मात्, शेषाङ्गादौ वचस्तकत् // 31 // यत्र स्पष्ट उपोद्धातो नुवृत्तिस्तस्य ना भवेत् / अपेक्षातोऽधिकारो यत्, सर्वन्यायविदां मत: // 32 // एतत्सूत्राण्यपेक्ष्योक्त-मर्थमाश्रित्य मङ्गलम् / उपोद्घातस्य नियुक्ती, ज्ञानपञ्चककीर्तनम् // 33 // तथापि प्रतिनियु- // // 2 // क्ति पार्थक्यात् मङ्गलादरः / तत्कृतां यद्विशेषेण, तद्वाच्यं तत्र कथ्यते // 34 // वाङ्मयेषु न शेषेषु, तथा / / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Banाका servasanालिन कै.. था. ত্রা / Jun Gun Aaradhak Trust

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