Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 85
________________ S/ समुद्भवः / चेन सिद्धान्तबाधा स्यात् , तेषां तस्यापि लिङ्गता // 39 // शास्त्रोत्तीर्णी क्रियां कुर्वन् , स्वयं शास्त्राआगमो- श्रितां पुनः / निन्दन् कदाग्रहग्रस्तो, मिथ्यात्वी निश्चयान किं 1 // 40 // व्रतार्थी श्रावको धर्म, श्रयन् लिङ्गै प्रतिमापूजाद्वारककृति- भैवेद्युतः / शुश्रूषादिभिरभ्यच्यरित्येषां लिङ्गताऽनघा में // 41 // श्रुतधर्म श्रयन् श्राद्धश्चन्न वैतृष्ण्यभाग्भवेत् / द्वात्रिंशिका सन्दोहे भवेन्मुग्धो वृषेऽनिच्छः, क्रुद्धश्चासौ न शुद्धदृक् // 42 // ततः सिद्धमिदं हन्त, श्रोतारं शास्त्रवर्मनः / समाश्रित्य वितृष्णत्व-मुखं लिङ्गं यथोदितम् // 43 // ये च दानादिधर्मेषु, प्रवर्त्तन्ते नरोत्तमाः। तेषामौदार्यदाक्षिण्य-मुखं HI // 76|| लिङ्ग सुदृग्भवम् // 44 // एवं लिङ्गानि पश्चापि, सम्यक्त्वगमकानीति / न लेशतो विरोधोऽस्ति, स्याद्वादन यमिच्छताम् // 45 // कश्चिदेकमकारं तु, निश्राय निश्चयं घदन / निराक्रियेत विद्वद्भिर्नैकान्तो यत् श्रुतानुगः | // 46 // व्यवहार्याणि लिङ्गानि, नैकान्ताद् वीतरागता / सर्वज्ञतायाश्चिद्धं यन् , नाध्यक्षोहथा तु लिङ्गतः // 47 // वीतरागत्वसाधुत्व-श्राद्धत्वानां च कानि वै / सज्वलनप्रत्याख्याना-प्रत्याख्यानशमान् विना // 48 // लिङ्गानि | IDI व्यवहारेण, यतोऽथाख्यातमुख्यकाः। गुणाः प्रादुर्भवेयुस्तदत्रापीदं निभाल्यताम // 49 // शिवार्थी निश्शेषो यतिगृहिगणः सन्मतरुचिः, प्रयत्नं कुर्वाणो निजहितकृते सदृशि सदा / यतेतात्मार्थी सन् जिनपगदितं लक्षणचयं, शमाद्यं बुद्ध्वा यत् शिवपदकरी सैव सुधियाम् // 50 // इतिशमनिर्णयः॥ प्रतिमापूजाद्वात्रिंशिका (30) नत्वा नगेन्द्रराजालिं, जिनं सत्तत्त्वदेशकं / तत्पूषायामघोन्मादं, चिकित्सामि ययागमम् // 1 // ISI श्रीमजिनेन्द्रमूर्तीना-मर्चने यो वदेदघं / प्रष्टव्यः स पुमानेवं, कथं बन्धोत्र पाप्मनः 1 // 2 // मिथ्यात्वमRI ब्रतं योगाः, कषायाच यताऽहसः / बन्धस्य हेतवस्तत्र, किमर्चायां विभोरिह ? // 3 // जिनेन्द्र देवताबुद्धेन // 76 // DHP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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