Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ प्रतिमा आगमोद्वारककृतिसन्दोहे // 83 // भव्यस्य, साधोईष्टेः सुदर्शनं। प्रादुर्भवेत्तथाप्यन्त्ये, पूज्यता सद्गुणत्वतः // 41 // गुरूणामुपदेशेन, स्याद्यथा सद्गुणार्जनं / दुष्प्रतीकारताऽऽम्नाता, ततश्चैषां तथेह तु // 42 // यथोपकरणं साधोश्चारित्रोत्पादकं ततः। पादादिना न संस्पृश्य, तथात्वे तु विराधना // 43 // तथैषा सदृशो हेतु-स्तदाशातनवर्जनं / यथा तीर्थकृतां शक्रा, दंष्ट्राणां सुरसद्मनि // 44 // न वृक्षादिर्धियां हेतुः, समेषां तत्त्वसंश्रितां / यथार्चादि ततः सिद्धो, भेदः स्पष्टोऽनयोयोः // 45 // स्त्रीत्वसाम्ये प्रसूवध्वो-यथा स्पष्टा भिदा मता / तथा चेतनतासाम्ये, हेतोः पूज्यत्वसङ्गतिः // 46 // पञ्चमेऽङ्गे नतिविद्या-जङ्घाचारणसाधुभिः / चैत्यानां विहिता पूज्यै- स्तत्किं विस्मरणं गतम् 1 // 47 // नच ज्ञानं यतस्तत्र, तत्रत्यानीति भाषितं / ज्ञानं त्वे न तत्रत्यं, नचाश्रद्धानको मुनी // 48 // ज्ञानस्य वन्दनं व्योम्नि,स्थितेनाधातुमीश्यते / अवतारात्तु चैत्यानां, नतिविम्बाद्यपेक्षया // 49 // अपि चात्य वन्दन्त, इत्युक्तौ प्रतिमानतिः। स्पष्टात्रैवात्र चैत्यानां, सद्भावश्च ध्रुवस्ततः॥५०॥ ज्ञातधर्मकथायां न, किं द्रौपद्यार्चिता प्रभोः ? / अर्चा, तथा च खाद्यानां, किम्वुत्सूत्रमजल्पितः // 51 // आनन्देनान्तिमाईन्त्यान्वितस्य पुरतः कृता / सन्धाऽन्यस्वीकृतार्चानां, नत्यादावर्हता सका // 52 // न स्याद्विनाहतामर्चा-मेवं तस्य प्रजल्पनं / अम्बडोप्याख्यदाद्याङ्गोपाङ्गेऽनूनमिदं खलु // 53 // तथाचाजीवताहेतोर्न न नम्या जिनाकृतिः। भावना तत्त्वगा सिद्धिं, ददाति भविनां द्रुतम् // 54 // यथा लिपिर्नता ब्राह्म्याः , सूत्रादौ गणधारिणा / ज्ञानाङ्गत्वात्तथा नेयं, किं नव्या सदृगं गतः 1 // 55 // यथाऽजीवं शबं साधो-नम्यते धार्मिकैर्ऋतं / संस्मृत्य, कं तथा स्तुत्या, जिनार्चा न गुणेक्षिभिः // 56 // यथोत्सर्ग प्रपन्ने स्यात् , साधौ फलोदयो ध्रुवः। शुभाभिसन्धेर्नमनात् , तथैवात्र विभाव्यताम् // 17 // यथोपकरणे साधो शिते तद्गुणाश्रितः। तीवो मन्दः कर्मबन्ध-स्तथात्र प्रतियोगिनः // 58 // यथा' काये- समेऽप्यर्ह-दुपसर्गे भवोदधिः / अनन्त इतरत्राल्पस्तद्वद् / . IN // 83 // K P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak !

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