Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ प्रतिमा मिथ्या-वाद आवश्यके मुखे // 23 // शिष्याणां गुरवो वाच्या-स्तेषां तेन कके पुनः / ध्यान्ध्यापत्तिविनाकाराआगमो ISI ङ्गीकारं नैव शाम्यति ॥२४॥किञ्च वन्दनकेऽपि स्यात्संबुद्धयामन्यमाकृतेः। विना सा यद्विना साक्षात्कारं नार्हति .. द्धारककृति- कुत्रचित् // 25 // मह्यं त्वमनुजानीहि, मितावग्रहमित्यपि। कथं शिष्यस्य शोभेत, वाचा यद्याकृतिर्नहि 1 // 26 // सन्दोहे गुरुं स्वकं समुद्दिश्य, चेन सर्वे तथा मताः / स्युस्तथापि गुरोरुक्तिः पूजासिद्धिः , न कथं वितथा भवेत् ? // 27 // प्रमाणयुक्तो नैवास्ति, विहरज्जिनसङ्गतः / अवग्रहः, क्व यात्रा क्य, प्राप्तिः स्वमेपि स्यात्किमु ? // 28 // अधाकायं प्रतिक्षाम्यन् , कथं स्पर्शो विधीयते ? / कथं च स्याद् गुरोः क्लान्ति-येन तत्क्षमणं श्रुते // 29 // तथा च यदि नोपेया, ह्यजीवत्वात् प्रतिक्रिया। नावश्यकं विधातव्यं, तथाचेद्वितथोदितिः // 30 // गर्दा पि स्यात्कथं चार्वी, यतः सा गुरुसाक्षिकी / नाङ्गीकाराद्विनाकृत्या, तत्तथेति विमृश्यताम् // 31 // कक्षीकाराद्विना मूर्तेः, कं पृच्छन्ति सुहृत्तमाः। इच्छया सन्दिशत भो, ईयायाः प्रतिक्रम्यते // 32 // | के चोशन्ति प्रतिक्रान्तु-मिच्छा मेऽस्तीति साधवः। प्रत्याख्यानं कथं साधोः, स्यात्ससाक्षिकमाईतम् ? KI // 33 // प्रतिक्रमणकाले किं, स्थाप्यते इति संस्मृतं / सूत्रेऽनुयोगसझे तद् , ध्रुवं स्थाप्या प्रतिक्रिया // 34 // अक्षो वराटको वेत्यादिरूपेण सूरीश्वरैः / सद्भावेतरभेदेन, स्थापनैवं तु युज्यते // 35 // दशकालिकशास्त्रार्थगङ्गाहिमवदाकृतिः। श्रीमान् शय्यम्भवः प्रापन्न-किं विम्बात्सुदृष्टिताम् ? // 36 // आर्द्राय प्रेषि जिनराड्-बिम्बं यवनदेशिने। धीसखेनाभयेनाई, दृष्ट्वा सद्दशमाप च // 37 // वृषादि प्रेक्ष्य किं बोधि जनि प्रतिमादिवत् ? / तत्किं स्यात् पूज्यता तेषां, न चेत्काऽत्र नवा मतिः // 38 // सत्यं परं न तत्तत्स्था-कृत्यादेः किन्तु चिन्तया। तद्रूपेण समं विश्व-भावानामत्र नैव तत् // 39 // देवत्वोल्लेखतस्तेन, प्रोक्ततत्ववजस्य च / अन्वीक्षणात्सुदृष्टित्वं, तत्पूज्येयं न चेतरत् // 40 // अभव्यस्येव IBP.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak

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