Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 86
________________ आगमो द्वारककृतिसन्दोहे // 7 // मिथ्यात्वं जिनार्चने / न चोय स्थापनायां न, गुणास्तत्तत्र किं न तत् 1 // 4 // यथा नाम्नि गुणाभावे, प्रतिमापूजा नमोऽर्हद्भ्य इतीरणे / गुणाभावगताः नम्यास्तथात्र करणौ न किम् 1 // 5 // किश्चान्ययूथिकाऱ्यांना, त्यागोऽर्चायाः कृतो न वा ? / कृतश्चेत् किं न तद्देव-बुद्धया स्यान तदन्यथा // 6 // शास्त्रेषु बहुषु प्रोक्ताः, सप्रभावा हि द्वात्रिंशिका मूर्तयः / अन्ययूथिकदेवानां, सत्यं तच्चेन किं गुणः 1 // 7 // सम्यक्त्वे त्याज्यता सूत्र, चैत्याना परतीथिकैः। स्वीकृतानां जिनानां तन् , न बिम्बे जिनधीवृथा // 8 // श्रीऔपपातिके सूत्रे, तदतिदेशयुतेषु च / सर्वत्र वर्णने पुर्या, बाहुल्यं चैत्यगोचरम् // 9 // अत एव गता यस्मा-चारणाश्चैत्यवन्दकाः / तत्रैत्य वन्दनं कुर्युश्चैत्यानामिति गीयते // 10 // उत्सर्गे साधवस्तासां, मूर्तीनां वन्दनादिगं / फलमाप्तुं पठन्ति स्राक्, सूत्रमावश्यकोदितम् // 11 // अव्रतं च न तद्धतुः, कषायोदयजं हि तत् / अन्यथा मुनयः किं स्वगुरोरभिमुखं ययुः // 12 // कथं महधिकाः सर्व-सामग्र्या जिनवन्दकाः / निर्ययुः ? किञ्च वर्षासु, व्याख्यानश्रुतिरिष्यते // 13 // तदारम्भात्प्रमादाङ्गा-दनिवृत्तिर्भवेत्तकत् / न चात्र तत्कथं बन्धो-हसां सस्यग्विचिन्त्यताम् // 14 // कषायाश्च न पूनाया, हेतवो येन बन्धनं / पापानामत्र सम्भाव्यं, योगेभ्यस्त्वल्पकालगः॥ 15 // यथा साधुनंदी क्राम्यन् , प्रमादाद्वन्धभाजनं / तथात्र तेन देवानां, पूजयाईन्त्यसहति // 16 // न चोय सर्वथा पापा - भावे किं मुनयो नहि / आद्रियन्तेऽहतां द्रव्य - पूजायां मोक्षकाक्षिणः 1 // 17 // तत्र तेषामनाचारो, नैव पापनिबन्धनः / अन्यथा कि नदीः काम्येत् ; सर्वपामनिवारकः 1 // 18 // किन्तु हेतुरुपा- | देयो, यावत्साध्यं न सिद्धिभाग / साध्यसिद्धौ न मूोपि, साधनं प्रति सोद्यमः // 19 // भावस्तवो हि . साधूना, सिद्धो दीक्षादिनाद् ध्रुवं / नैषां ततस्तद्धेतोहि द्रव्यस्तवस्य सेक्नम् // 20 // अत एवोदिता हेम-सूरि- ISI // 7 // भियोगवाङ्मये / निरवद्यार्चना श्रादै-ईया सामायिकाहतौ // 21 // न सपापाऽ तां पूजा ततः सामायिका Ac. Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust

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