Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ आगमो द्वारककृति I पूजा सन्दोहे // 78 // हतौ / तस्याः प्रसङ्गसम्प्राप्ति-रन्यथा ध्यान्ध्यजृम्भितम् // 22 // हारिभद्रं वचः स्वस्ति-करमावश्यके स्फुटं। पूर्वपापेन सहितं, सर्व पूजा दहेदघम् // 23 // अर्थदण्डेऽपि नाङ्गेऽतो, द्वितीये अँचिवान् जिनः। जिनपूजाभवां I प्रतिमा हिंसां, यथा नागादिपूजने // 24 // अष्टकेऽपि स्वरूपेण, साङ्कीर्ण्य पुष्पपूजने / न्यगादि हरिभद्रेणानूदितं च जिनेश्वरैः // 25 // स्वल्पस्याप्येनसस्तत्र, चेद्भवेत् सम्भवस्तदा / तन्मुनीन्दैन कार्य स्यान्नानुमोद्यं च कहिचित् / // 26 // उदाहृतं च यत्पूज्यैरल्पाघे बहुनि रे / कार्येऽर्हत्पूजनं तत्र स, मृषाऽदत्तादिहेतुता // 27 // अत एवोदिता तत्र, जिनेन्द्रपक्षपातिता। अर्हद्भक्त्या कृतौ त्वस्य, विषयो नात्र युज्यते // 28 // अशुद्धैरन्नपानाद्यैग्न्लानोपचरणे यथा। तथात्र ज्ञापितो किं स्यात्, शुद्धैरिव नयार्चने // 29 // साधूनामर्हतां भक्तेः, शंसायां यः शुभोदयः / सोऽपि पापविनाभूतौ, पूजायां नान्यथा क्वचित् // 30 // न ह्याधाकर्मणो दान-मल्पपापं मुनिः क्वचित् / प्रशंसेदनुमन्येच, सुबहुनिर्जरान्वितम् // 31 // तदेवं जिनपूजायां, द्रव्यतोऽपि न पाप्मनः / बन्धस्ततः सदा श्राद्धास्तां कुर्वन्तु यथागमम् // 32 // सदा पूजा भव्यैर्जिनगुणगणालीढहृदयैः, शिवाप्त्यै स्वान्येषां सततसुदृगाद्यर्थमनिशम् / विधेया चेत्सिद्धौ परमसुखमय्यां यदि मनो, जिनोक्तं संस्मृत्योदितमिदमनन्तार्थकलितम् // 33 // इतिप्रतिमापूजाद्वात्रिंशिका // प्रतिमापूजा (31) अर्चा जिनेश्वरार्चानां, कथं सम्यक्त्ववर्धिनी?। यतोऽध्यक्षं समीक्ष्यन्ते, बढ्यो जीवविराधनाः॥१॥ न राज्यदेशग्रामेश-त्वेनार्हत्पूजनं मतं / त्यक्ताष्टादशदोषत्वं, हेतुरव्ययदेशनम् // 2 // ततस्त्यागस्य सन्मानोऽहंदर्चानां समर्चने / अप्यष्टभिः प्रातिहार्यैरानचुरमरा अपि // 3 // च्यवनादिषु सत्कल्याणकेषु सुरराजयः / IN // 78. // IM .. M .' Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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