Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 88
________________ पूजा आगमो जीवतोऽर्हत आनषुः, समवसरणादिभिः // 4 // गुणानामसतां प्राप्तिः, प्राप्तानां चाभिवर्धनं / गुणश्लाघार्चनासाध्यमहदर्चार्चनं ततः // 5 // प्रत्याख्येयो गृहस्थानां, प्रसानां वध इष्यते / नातो हत्वा साना, पशुभि- HI प्रतिमा द्वारककृति A यज्ञवन्मता // 6 // ये च श्राद्धा न कुर्वन्ति, स्थिराणां वधमात्मना / कुर्युर्भावस्तवं ह्येकं, यथा सप्तमवाहिनः सन्दोहे // 7 // सर्वस्थिराङ्गिहिंसां ये, कुर्युः स्वार्थान्धिता नराः / हिंसाधीः पूजने तेषां, लोपकोद्धमितात्मनाम् // यथा गुरूणां नत्याद्याः, श्राद्धैवर्षति वारिदै / क्रियन्ते सन्मुखं गत्वा, लाभाय गुणमानिभिः // 9 // त्रसेतरा. गिरक्षाय, वस्त्रपात्रप्रमार्जनं / हृद्याधाय दयां तच्च, साधुकृत्यं गुणान्वितम् // 10 // दयानाम्ना यदा श्राद्धो, नाभ्येति गुरुसन्मुखं / विराधकस्तदा तद्वजिनार्चायां दयाब्रुवः // 11 // अशुद्धमपि भक्तं चेदास्तिकः साधवे- / ऽर्पयेत् / तत्र चेन्निर्जरा वह्वी, किं नार्चायां जिनेशितुः // 12 // जिनो निष्किञ्चनछत्रा-दिषु चेद्रागहानितः। कुतो भोगित्वमायात-मजीवप्रतिमार्चने? // 13 // जिनकर्मप्रभावेणार्च्यते देवैर्जिनः सदा। सम्यक्त्वोत्थं च तत्कर्म, तच्च कर्मक्षयादिजम् // 14 // वन्दनाद्यर्थमुत्सर्गोऽईदर्चानां मुनेरपि / बोधिमोक्षफलः किं न ?, श्रावके तह KI का कथा ? // 15 // महितेति पदं स्तुत्यै, महनं किमु आश्रवे ? / सम्यग्दृष्टेर्गुणो नैवाश्रवस्तुत्या कथञ्चन // 16 // अपेक्ष्य स्थापनां सामा-यिके भंते' त्ति शब्दनं / नतौ कायादिस्पर्शस्यार्चायां का विमतिस्तदा // 17 // HI अवग्रहो गुरोर्याच्यो, वन्दनादौ मुने ! त्वया। विनार्यों कस्य मार्येतावग्रहस्तत्स्थिराऽऽकृतिः॥१८॥ हिंसा धर्माय | नैषा यत् , तारतम्यं न हिंसया / धर्मस्य, वहुमानेन धर्मस्यास्ति विशेषिता // 19 // याज्ञिकानां यथा सख्या, वृद्धिधर्मस्य वृद्धये / अजादीनां. तथा नात्र, किन्तु भक्त्यतिशायिता // 20 // दूरमाराद् गुरोर्यात, सन्मुखं लाभकृत्पुनः / गन्तुरात्मगतो भावस्तथाघ्राकृतिपूजने // 21 // यथा हिंसाप्रमत्तस्य, निर्जरैकफला KI IN // 79 // मता / सम्यक्त्वादिगुणोन्नत्य, तथाऽर्चायां शुचेर्हृदः // 22 // स्वरूपेणैव हिंसा चेद्, भवभावनिबन्धनं / नदी Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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