Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
View full book text
________________ कृति / अपवादात्त अयं वध इव नाकेच्छया यझे // 50 // किंचार्चाया उक्तं फलं जिनानां स्वयं परैर्वाऽऽद्य / पूजेप्सवो आगमो- जिनाः स्युन मानमन्त्ये विकल्पे च // 51 // अन्यच्चाचार्याद्या विरताः सावद्ययोगतस्त्रेधा / करणाद्यैः कायायैः / निक्षेपद्वारक- कथमारम्भं दिशेयुरमुम् // 52 // निरवद्या चेत्पूजा विदघति किं नैव सूरिराजाद्याः 1 / यन्नात्मनोऽस्ति हितदंशतकम् तत्कथमुपदिश्यतेऽन्यस्मै 1 // 53 // यद्वद् ग्रामविहारे नद्युत्तरणं वधान्वितं यतिनाम् / अपवादतो विधेयं कि सन्दोहे तद्वन्नार्हतः पूजा ? // 54 // कामं तथापि सर्वे भविनो निःश्रेयसापकं धर्म / साधो वार्चनमयलमाधातुं .. क्षमा नैव // 55 // भावार्चनेऽक्षमा ये ते कुर्युर्जिनराजपूजनं द्रव्यैः। हेतो: पूर्वीक्तात् खलु मलिनारम्भान्विता / गृहिणः // 56 // स्त्र्यादिकृते सारम्भा अपि ये जिनराजपूजनं द्रव्यैः। हिंसामीत्याऽत्याक्षुर्दुस्तर एषां महामोहो // 57 // आरम्मे चेजुगुप्सा कायारम्भे गृहे स्थिताः कि ते 1 / कुश्रुतकुतर्ककुमतेरतोचने वधभयं जनितम् // 58 / / / पुत्राद्यर्थ हिंसादण्डोऽर्थत आगमे समाख्यातः / पुष्पाद्यरचनायां जिनस्य किं नानर्थदण्डत्वम् ? // 59 // असदेतन् / नागादेरायानर्थदण्ड आख्यातः। आप्तरङ्गे द्वितीये नतु जिनचैत्यादिपूजायाम् // 60 // उष्णाम्बुभक्तदाने साधोस्तद्वन्दनाय निर्गमने / वर्षायामुपदिष्टय गमने मुनिदर्शनायापि // 6 // निष्क्रमणे निर्हरणे किं ते नानर्थदण्डमीरुत्वं / तत्त्वं देवविलोपी खपोषकोऽनृतवधादेशी // 62 // अत आगमानुसारी श्राद्धो नैवार्चन जिनेन्द्रस्य।।। स्वानुचितैः कन्दाद्यः कुर्याद्यत्तत्र वधभयं तत्त्वात् // 63 // ये संसारोद्विग्ना ग्रहीतुमनसो मुनित्वमारम्भम् / / / | न स्वकृते तन्वन्ति, प्रष्ठधियस्ते न तां कुर्युः // 64 // शुभपरिणामात्पूजां जिनस्य रचयन्ननुक्षणं कर्म / निर्जरयति दुर्जरं यन् नाशयति भवं शुभो भावः // 65 // एकान्तेनारम्भे चेदाज्ञा लुप्यते जिनेशस्य / स्याद्वादस्ते | नष्टः सिद्धा अब्ध्यादिषु कथं च 1 // 65 // दानादौ ते लाभो मूयान भूयसि नतौ गतौ दुरात् / सर्वेष्वन्येषु तथा | चेत्पूजया कि विराद्धं ते 1 // 67 // यद्वद्धर्मांशोज़ानुमोद्यते न च ततो वघानुमतिः / तद्वजिनपूजायां कि मति- 11 // / मन्नव चिन्तयसि ? // 68 // कर्ताऽपि यथा तत्रोद्यच्छति बहुशो विधातुमनधमनाः / नवद्भावविशुद्धधै / P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105