Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 19
________________ निक्षेप / धारयन् मौनम् ? // 31 // दुग्धं कि नामधेनुर्ददाति यजापमातनोषि सदा। भावविशुद्धथै चेत्सा द्विकेङ्ग जग्धा आगमो-|| यदेवं वाक् // 32 // दूरस्था किं धेनुर्ददाति दुग्धं न चेजिनादींस्त्वं / लभसे भव्यं स्मरयन् भावाच्चत् सोऽत्र द्वारक- HI किमु नष्टः 1 // 33 // जिनबिम्बानां पूजा मनःप्रसत्त्यै ततः समाधिश्च / तस्मादमलं शिवपदमतो हि तत्पूजनं न्याय्यम् / शतकम् कृति- // 34 // सामायिकसूत्रं स्त्र पठन भदन्तेति के समुद्दिशसि ? / गुर्वाकृति गुरुं वा विनाज्यथा तामृषा न किमु ? सन्दोहे // 35 // आवश्यकं तृतीयं तन्वन् चरणं स्पृशसि ननु कस्य ? / निजमस्तकेन गुर्वाकृतिं गुरुं वा विना साधो! // 36 // अनुयोगेष्वत इष्टं स्थाप्यतयाऽऽवश्यकं प्रतिक्रमणे / अक्षादि तद्विचिन्तय चेत्सूत्राराधनाकामः // 37 // // 10 // गुरुविरहे नियता तत्प्रतिमा कार्या समग्रधर्मकृतौ / नानापृच्छय गुरुन् यत् क्रियते कार्य मुनिपदस्थैः // 38 // किंचाविरहेऽपि गुरोः स्तुतौ जिनानां तदाकृर्तीनियमात् / स्थापय सत्यं विद्वन् ! स्थैर्य विशेषाय चोत्सर्गे // 39 // / नैवाचार्यस्य पुरतः परः शतानां तु वन्दनविधौ स्यात् / चरणे मस्तकलगनं तत्तच्चरणौ ध्रुवं स्थाप्यौ // 40 // || " मोक्षो जिनेन्द्रकथिताचाराचरणाद् भवेच्च तत्त्यागात् / स च दुष्करोऽथ लब्धे तस्मिन् ज्ञेयः स्तवो भावात् // 41 // मक्त्या वक्तरिमानस्तस्मात् प्रचुरा पुनर्भवेद्भक्तिः। एवमन्योऽन्यवृद्धौ गच्छेन्मानः परां काष्ठम् // 42 // वक्तु। माने प्रचुरे मानं वचनं भपेत् परं तस्मात् / वर्धेतांशांशेन हि त्यागो यो दुष्करोऽभिमतः // 43 // गृह्णानो || व्रतमन् सिद्धे सत्यपि गुणधिके नाख्यत् / अपरोपदेशबोधात् पदं भदन्तेति न परनराः॥४४॥ सिद्धसमक्षं / / | गृह्णन् व्रतं तदाकारमादधीतान्तः। सम्बोधनप्रभावाज़ ज्ञायत एतत् पुनर्विदुषा।।४५॥ न च सिद्धा आका। रैरहिता इति तत्त्रतिकृतिनैव / अवगाहना च संस्थानं तेषां गीतमहद्भिः // 46 // सत्यं पूजा हि तदा कृत कृत्यानां गुणार्थिनां पुंसां / परमस्तु भावतः सा यन्नारम्भादि दूरितपदम् // 47 // आरम्भे जिनपाज्ञा लुप्येतात: / / सदावधोत्रस्तः / स्नानकुसुमदीपादिभिरर्चनाधीयते नव // 48 // अपवादपदं चषा नाहित्प्रतिकृतेर्भवेद् द्रव्यैः। // 10 // // अच्युतपददं यस्माद् द्रव्यार्चनमिष्यते विज्ञः // 49 // ओरम्भस्य बिहासा भव्यानांशिवपदाप्तये गीता / / / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.

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