Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ स्याद्वादद्वाकि कृतिसन्दोहे SEENESS शिका कस्यचित् पुनः। नित्यानित्यान् समानाख्याजिनः समपदार्थवित् // 7 // निश्चयं व्यवहारस्तं, व्यथते स च निर्भयम् आगमो / परस्परसमावेशं, तीर्थाधारं जिनोऽवदत् // 8 // आर्थान् नयान् नयाः शाब्दा, भन्ति ते प्रन्ति चैतकान् / उभयान् द्धारक सर्वगानाख्यझिनः स्याद्वाददेशकः // 9 // नैगमं सांग्रही नीतिस्तां हन्ति व्यवहारिणी / पारम्पर्येण, दृष्ट्वेति, मतं सर्वनयात्मकम् // 10 // अभिलाप्यं तथा नेति, जगुर्वस्तु परेऽबुधाः / उभयात्मकतार्थानां, जगदे जगदु त्तमैः // 11 // पर्याया नाम करणिर्द्रव्यं भावस्तथोचिरे / स्वतन्त्राः सव्यपेक्षांस्तु, तानाह जगदीश्वरः // 12 // // 26 // पर्यायान् सत आचष्टे, परेऽसत उदित्वरः / मुनिः स्वतः सतोज्यस्मा दसतः सर्ववस्तुषु // 13 // नैवोत्पादमयं विश्व, न पुनर्विशरारु च / ध्रुवं नोत्पादविगम-ध्रौव्यरूपं जगत्पुनः // 14 // न दुःखी न सुखी जीवः, सर्वथा सर्वधामसु / संसारिणां विचित्रे स्तः, सुखदुःखे स्वकर्मजे // 15 // सान्ताः समे न चानन्ता, अर्था भुवनगाः स्मृताः / अन्तानन्तमयं विश्वं, वस्तु जिनप ऊचिवान् // 16 // साद्याः समे न चानाद्या, अर्था भुवनगामिनः / आद्यनादिमयं सर्व, जगदीशो जजल्प तत् // 17 // एकात्मकं जगत्सर्व, मन्वते केचिदन्ततः / अनेकरूपं तच्चान्ये, जिन एकेतरात्मकम् // 18 // मुक्त्यै सर्व जगद्योग्य-अयोग्यं मन्वतेऽपरे / योग्यायोग्यमयाः सर्वे, भविनस्त्विति जैनवाक् // 19 // आत्मा ज्ञानमयः कैश्चित् , कैश्विदुक्तः क्रियामयः। अनन्तैः पर्ययराढ्य, सर्व वस्तु यथार्थवाक् // 20 // हिंसाधाय मता कैश्चित्, परैः स्वर्गाय काचन / यथाभावमधं पुण्यं, निर्जरेति जिनेशगीः // 21 // मृषाद्या नरकायैव, न तथेति च केचन / अनेकान्तेन वितता, देशना जगदी श्वरैः // 22 // क्रिया वन्धाय केषाश्चित् , परेषां घिषणैव च / यथायोगं युगं चैतन् , मन्यते मुनिकुञ्ज // // 23 // उत्क्रामन्तेऽङ्गिनः सर्वे, न तथेति परे पुनः / विचित्रा विश्वगा वृत्तिरनेकान्तमते पुनः // 24 // सूर्याचन्द्रमसौ स्थास्नू , केचित् केचिच्च चञ्चलौ / अवादिषुर्मत तथ्य, जगत्सर्वं चलाचलम् // 24 // असदुत्प- IN ||26 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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