Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 48
________________ आगमोद्धारक कृति सन्दोहे // 31 // दिशां माने, परिवसनाग्रहाद्भवेत् / द्रव्यादेः स्थापनां कृत्वा, स्थानात् पर्युषणाभिधा // 9 // प्रावृष्यनियमपि स्याद्वर्षामाभित्य निर्णयात् / वासस्य पञ्चमी सञ्चा, वर्षावासेति सार्थिका // 10 // शेषेवष्टसु कल्पेषु, परो- पर्युषणा-- ऽवग्रह उच्यते / मासिकोज चतुर्मासो, ज्येष्ठावग्रहता ततः॥११॥ एवं षट्स्वभिधानेषु, स्थापना समयाश्रिता। रूपम् या तां पर्युषणामाहू, रूढ्या व्याख्यानकोविदाः // 12 // न्यूनातिरिक्तमासोष्टौ (कार्तिक्या) भ्रान्त्वाऽऽषाढ्यां स्थिरो मुनिः। प्रावृड्वर्षोभयं मुख्यं, चतुर्मासी स्थिरो भवेत् // 13 // शाक्यास्त्रीनेव स्थित्वैकत्र मासो मेनिरे स्थिताः। कांश्चिद् वर्षाचतुर्मासी, वर्षावासोऽखिलैर्मतः // 14 // अध्वद्रव्यादिदुर्लभेऽवश्यं वर्षासु स्थास्नुता / वर्षावासोज तेनाह्वा, चतुर्मास्यत्र नो ऋतोः // 15 // ननु भाद्रात्परं वर्षा, सत्यं प्रावूड् ऋतुः पुरा / परं विभक्तः स द्वेधाऽद्यः प्रावृट् परस्तथा // 16 // अहोरात्रान् दश क्षिप्त्वा, वर्षाहेषु ततः श्रुते / जघन्योऽवग्रहो घस्र-सप्तत्योन्मित उच्यते // 17 // पकः प्राणाः स्थण्डिलोवी, वसति!रसो जनः। वैद्योषधसमूहेशाः, पाषण्डो भिक्षणं व्रजः // 18 // ताकस्थानाय पश्चाहैकादशान् वर्धयेत् पदे / सावनी रीतिमाश्रित्य, दिनैः पञ्चाशता सका // 19 // आद्योऽवग्रह आम्नातोऽधं सक्रोशयोजनम् / पूर्ण योजनमन्यः स्यात्, सक्रोशः क्षेत्रसंमितौ // 20 // आहारे विकृतौ संस्तारे मात्र लोचवस्तुषु / ग्रहो धृतिस्त्यजिर्योग्यो, द्रव्यपर्युषणा त्वियम् / // 21 // ईर्येषणावाक्समिती . मनोवाग्दुष्कृतौ कृते। विग्रहे च कषायेषु, भावे वार्षिकवर्जनम् // 22 // शैक्षः सचित्ते नो दीक्ष्यो, भावितो न परे पदे / अल्पवृष्टौ ततो याने, कुर्याद्धर्मावहेलनम् // 23 // शौचवादं पुरस्कृत्य, कुर्यान्मुनिजुगुप्सनं / श्रित्वा सकर्दमाङ्गं स, मुक्त्वा जीर्ण च भावितम् // 24 // परोजप राजाऽमात्यो वा-तिशय्यच्छित्तिकारकः / दीक्ष्यो धाम्नि विशाले पाशौचो धार्यों विवेकतः // 25 // भावे या स्थापना साा , तत्तद्रूपकथानकः / साधूनां वोधनं पर्यु-षणायास्तत्त्वमग्रिमम् // 26 // :पयुषणेयमाद्य- // 39 // न्त्यत्तीर्थयो: कल्पमाश्रिता। परमन्त्याहतस्तीर्थे, कर्षणं मङ्गलं मतम् // 27 // प्राक साऽऽषाढ्याः परं / / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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