Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 74
________________ आगमो. द्वारककृति सन्दोहे // 5 // in एकामेकादशाङ्गानि, ततोऽर्थोज भवेत् पृथक् // 7 // चतुर्दश च पूर्वाणि, सर्वेऽपि गणधारिणः। चक्रुश्चतुर्दशैतास्तु, नित्वा शासनसम्पदे // 9 // क्रियास्त्रे च सर्वत्र, निषद्याऽऽसनवाचिका / साधुदेहं जगुः सूत्र-कारात सम्वक्त्व नैषद्यगं पुनः // 10 // निषद्याद्योतिनी चक्रे, पद्धतिमर्थसाहाम् / आनन्ददां सुसाधूनां, मोक्षमार्गकचेतसाम् षोडशिका // 11 // इति निषद्याविचारः॥ .. सम्यक्त्वषोडशिका (24) नम्यो जिनेशो यदि तत्त्वबोधो. निर्ग्रन्थ आप्यो यदि मोक्षवाञ्छा। कृपा वितीर्या यदि कर्मभीतिस्तत्त्वत्रयं धार्यमिदं सुधीभिः // 1 // शास्त्रेषु सम्यक्त्वमुदीरितं ज्ञैर्भूतार्थतत्त्वेषु रुचिनिरीहा / जीवादिषु मोज्झितसर्वदोषा, निक्षेपमानैः सनयैः प्रबन्धात् // 2 // तुर्ये घुपाङ्गे प्रथमे पदेऽदो, जगाद सल्लक्षणमाप्तवर्यः / तथोत्तराध्यायवचोऽपि मोक्ष-मार्गे स्थितं भव्यविलोकनीयम् // 3 // सत्यप्यमुष्मिन् वचने गताघे, श्रीयोगशास्त्रे प्रभुहेमसरिः / जगाद देवे सुगुरौ सुधर्मे, श्रद्धानमुग्रं किमु सदृशां तु ? // 4 // सत्यं त्वयावादि विनेयवर्य !, परं विरोधो नहि कोप्यमुष्योः / यतो भवेजीवमुखानि सम्यक्, मन्वान आईन्त्यमुखेषु मन्ता // 5 // विलोकयन्नाश्रवभारभुग्नं, देवं गुरुं धर्ममुशेन तत्वम् / चेत्संवरे निर्जरणे च मग्नं, पश्येत्कथं नैव स मन्यतेऽहम् // 6 // श्रद्धा ततो जीवमुखेषु यस्य, जायेत र तत्त्वेषु जिनोदितेषु / कथं स कुर्यात् भववापिसेतो, श्रद्धां न देवे सुगुरौ सुधर्मे 1 // 7 // ज्ञाता न चिन्तामणिंसद्गुणानां, रमेत पाषाणचयें कदापि / न षट्पदधृतरसेन पीनो, निम्ब निलीयेत. गतात्मभावः // 8 // अवेत्व जीवादिपदार्थसाथै, श्राद्धस्ततो मुश्चति दुष्टदेवान् / गुरुश्च धर्मान् भवदावली IN AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradha

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