Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ आगमो. द्धारककृतिसन्दोहे ढान्, कूटे न कार्षापण 'आदरो विदः // 9 // आस्थाय माध्यस्थ्यमुशन् सभायां, चिन्तामणि सम्यक्त्वकाचसमानभावं / विद्वानपि प्रेक्ष्यत आदरेण, किं भाववेत्त्रोभययोर्यथाहम् 1 // 10 // जगाद वीरौं व्रत- DA धारणाया, अनुक्रमात्पञ्चकमाप्तमुख्यः / अतिक्रमाणां सुदृशस्तदादौ. शङ्कादिकान् पश्च समुदकीर्त्तयत् // 11 // |भेदविचारः विद्वजुगुप्सा विचिकित्सता वा, वज्योदिता या न सका गुरुं तु / धर्म च सत्यं निरचैषुरहे, तेषां परेषां न तु लेशतोऽपि // 12 // तथा परीहारमुदाजहार, वीरोऽन्यपाखण्डिकसंस्तवस्यः / न चाविनिश्चित्य गुरुं यथार्थ, जह्यात् सुदृष्टिस्तकमाप्तशुद्धिः // 13 // श्राद्धोऽपि चानन्द उपासकेऽङ्गे, तथा परिवाद / प्रभुरम्मडोऽपि / तत्याज मुक्त्वाहतचैत्यसाधू-नाये छुपाङ्गे परतीथिकाान् // 14 // ततश्च निश्चयमिदं सुधीभिर्जीवादितत्त्वेषु रुचिर्हि हेतुः / कार्या सुदेवव्रतिधर्मसेवा, यथार्थमेतद् द्वितयं जिनोक्तम् // 15 // सम्यक् सम्यक्त्वमालक्ष्य, शुद्ध देवे गुरौ वृषे / श्रद्धानं कार्यमानन्द-मयं येन पदं भवेत् // 16 // इतिसम्यक्त्वषोडशिका / / . सम्यक्त्वभेदविचारः (25) गुणो यथाऽऽत्मनो ज्ञानं, स्वरूपेण ततः शिवे / स्थितो भङ्गेन साधनन्ततया नित्यरूपभाक् // 1 // न तज्ज्ञेयाश्रितं ज्ञानं, ज्ञेयानां हानिवृद्धितः / विपर्यासान्न तस्य स्यात् . स्वरूपपरिवर्तनम् // 2 // नाज्ञातं तेन विश्वेऽस्ति, वस्तु किञ्चित् समन्ततः / ज्ञातं समं ततस्तेन, नेतरेतराश्रयता ततः॥३॥ अन्यथा तस्य सार्वइये, // 66 // ज्ञेयं वस्तु समं भवेत् / सिद्धे समाविस्तारे, ज्ञाते सार्वज्यमस्य तु // 4 // आत्मनी ज्ञानवन्नित्यं, गुणः सम्यक्त्वमिष्यते / चारित्रस्येव नाशोऽस्य, सिद्धत्वाप्तौ मतो नहि // // परं यथाऽऽत्मनो ज्ञानं, छामस्थ्ये वस्तुनिश्रितं / Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust AR

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