Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ आगमो द्धारककृतिसन्दोहे | // 37 // सप्ततौ // 70 // एवमेव च कल्पादौ, वर्षावस्थानमादिमं / गदितं मास आषाढे, पूर्णिमाया दिने पुनः // 71 // परमेव सविंशे हि मासे ख्यातं तकद् बुधैः / तथा च व्यक्तमेवेदं, द्वितीयं पदमाश्रितम् // 72 // नचावस्था- सांवत्सनविषयोऽपवादो वार्षिकं व्रजेत् / नान्यार्थोपोदितं यस्मान्नान्यदाश्रयते वच: // 73 // वार्षिकं नियतं भाद्रपदे रिकनिशुक्ले ले पुनः। चतुर्थी न च तत्रास्ति, द्वितीयं पदमाश्रितम् // 74 // अत एव च कल्पस्य, सामाचार्यों र्णय गणेश्वरः। जगौ पृथक् पृथक् सर्वाः, सामाचारीमुनीश्वरान् // 75 // अन्त्ये च क्षामणासूत्रं, गदितं गणभृद्वरैः।। अक्षामणे च निर्ग्रन्थ-सङ्घबाह्यकृतिः पुनः // 76 // न च मुनीनां सर्वेषां, सामग्री सर्वदा समा। इत्यवस्थानमर्यादा, सापवादा न चेतरा // 77 // वर्षास्थित्या अनियतत्वे, हानिन हायनेऽपरे। सांवत्सरस्य दिननियतत्वं न युज्यते // 78 // चन्द्रेऽब्दे मासदशकं, द्वघधिकं स्यात् परं मुधा / त्रयोदश भवेयुस्ते, मासास्तत्रैव हायने // 79 // द्वितीये श्रावणे भाद्र-पदे वाऽऽये प्रतिक्रमे / अभिवधितवर्षेऽन्य-वर्षे भाद्रे त्रयोदश // 8 // दिनानां विंशतौ सूत्रं. वर्षावस्थानगोचरं / सर्वाभिवर्धिते प्रोक्तं, न चतुर्मासगोचरम् // 8 // परं विधिः स प्रागासीदनित्यावस्थितौ मुनेः। अधुनाषाढशकस्य, चतर्दश्यां न तस्थुषः // 82 // सांवत्सरंतु प्राचीना. अपि नित्यं प्रतिक्रमं / व्यधुर्भाद्रपदे शुक्ले, नान्यत्र तत्र कारणम् / / 83 // प्रागुक्तमेव यत्तत्र, न युक्तस्तिथ्यतिक्रमः। या तिथिः प्राग्भवेद्वर्षे, सैवान्यस्मिन् विधीयते 84 // अत एव च सूरीशैर्वार्षिकं परिवर्तितं / न चेद् द्वितीयवर्षे किं, पर्व नैव च पूर्ववत् // 85 // उच्यते यच्च सप्तत्यां, शेषायामितिसूत्रगं / वचश्चन्द्राद्धविषय, 1 न पञ्चाशदिनी पुनः // 86 // तन्नभसि द्वितीयस्मिन् , प्रथमे वा वार्षिकक्रिया। कैश्चित्तद्युज्यते नैव, यतः 'सूत्रस्य भिन्नता // 87 // नैव चार्धजरतीयन्यायस्याश्रयणं शुभम् / न च सूत्रकृतां काले, वृद्धिः पौषशुची ऋते // 88 // मासां परेषां येन स्यात् त्वदुक्तेत्यर्थसम्भवः / // 89 // कल्पनाशिल्पिनिष्पन्नं, विकल्पं मनसा दधत् / / / 537 // . सूत्रोक्तमन्यथा कुर्वन, निर्लज: को भवादृशः // 90 // अनित्यं वार्षिकं चेत्स्यान् न. प्रत्याख्यानगोचरौ / / / 1 S IST

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105