Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 38
________________ आगमोद्धारककतिसन्दोहे नम् - // 29 // भेदान् वक्तुमुपनमः // 17 // युग स्याचन्द्रचन्द्राभि-वृद्धचन्द्रावर्धितः / नैकं तत्र क्रियायोगि, कर्माब्दं तु / / क्रियाविधौ // 18 // विहाय कार्मण वर्ष, नकस्मिन्नपि सम्भवेत् / दशपञ्चदिनः पक्षो, मासस्त्रिंशदिनोन्मितः / पर्व // 19 // मासदिशभिवर्ष, षष्टया: शतत्रयैर्दिनैः / अत एवोदितं ज्योतिष्करण्डे कार्मणं तथा // 20 // वर्षाणि | विधापञ्चधा कर्मेन्द्वक्षसूर्याभिवधितैः / निरंश एक एवात्र, कर्मसंवत्सरो भवेत् // 21 // व्यवहारोपयोग्येष, नान्ये / / सांशदिनोद्भवाः / संवत्सरास्ततः स्पष्ट, क्रिया कार्मणवार्षिकी // 22 // अहोनिशोऽवसाने द्वे, मते आवश्यके बुधैः / ऋते कार्मणमन्याहो, न हि तत्रोपयुज्यते // 23 // अष्टमी पक्षमध्ये स्यात् , पक्षान्ते पञ्चदश्यपि / अर्वाक पक्षदिनात्कार्य, चतुर्दश्यां तु पाक्षिकम् // 24 // सर्वमेतत् कार्मणाब्द-कालमाश्रित्य साध्यते / न्यायेनैव (नानेन तत् ) ततः कार्ये चातुर्मासिकवपिके // 25 // न च वाच्यं कथं तर्हि, वर्षेऽभिवर्धितेपि च / / विंशत्या दिवसः कार्यादिता पर्युषणा श्रुते // 26 // एवं सति न कर्माब्द, युज्यते सर्वपर्वसु / न तत्र / वार्षिक पर्वो-दितं पर्युषणाभिधम् // 27 // किन्तु संयमसिद्धयर्थ, जलकायविराधनां / परिहतु स्थिति वक्तुं, मुनीनां तद्वचो मतम् // 28 // चन्द्रेऽन्यथा परे वर्षे, कथं भाद्रपदे भवेत् ? / त्रयोदशभिरायातं, मासर्वार्षिकमामतम् // 29 // न च चन्द्रादिवर्षाणामेकस्यावसानिता। भाद्रपद्यस्ति पञ्चम्यां, चतुर्थ्यां वा कथञ्चन // 30 // IN कामणाब्दं तु वक्तृणां, विवक्षामनुयाति तत् / चतुर्थी भाद्रमासस्य, भवेद्वार्षिकपर्व तु // 31 // न . च केनापि सर्वत्र, हायने वार्षिकं मतम् / अभिवृद्धे दिनैर्विशत्या, किन्त्वाषाढात्परेऽधिके // 32 // शास्त्रे पौषाषाढयोस्तु, वृद्धौ पर्युषणोदिता / विंशत्या यहिनैस्तत्किमधजरतीयमाश्रयेत् // 33 // यथा वृद्धौ तु मासस्य. पर्वधस्त्रोऽवष्वष्कति / यवनानां तथैषां स्थान चेद् भाद्रपदे ध्रुवम् // 34 // वृद्धौ यथाऽन्यमासानां, Hi चतुर्मासीत्रिकं मई / वार्षिकेणापराद्धं किं, न तभिंयतमामतम् // 35 // दिनेषु सप्ततौ शेषेषुक्तं वार्षिकपर्व // 29 // यत् / तत्किं विस्मृतमायुष्मन् !,. नच शास्त्रवच, न्यथा // 36 // चतुर्मासत्रिके मासो, वृद्धो न गणनामयेत् / .. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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