Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ त्रिशिका || अम्भस्तिलानचित्ताना नुजज्ञे यमिनोऽप्यतः // 5 // कृतियथोक्ति देवस्य, लक्षणं द्रव्यतोन्तरा। संयमं तद् युता / / आगमो दारैः, शस्त्रैर्देवा जुगुप्सिताः // 6 // गुरवो मुक्तसङ्गाः स्युर्व्यवहारमृते कथं ? / ससंगाः सवधा: किं नान्यथा व्यवहारद्वारकगुरुपदोचिताः ? // 7 // धर्मः शुद्धः कषच्छेद-तापैः शुद्धौ कथं स्याताम् / आद्यौ न व्यवहारेण, विना सम्भवतः | सिद्धिषट, कृति क्वचित् // 8 // प्राणान हन्यात् मृषा ब्रूयात् , नासौ सर्वज्ञतापदम् / अनारम्भो मुनिर्धों, जन्तुबाधाविवर्जितः सन्दोहे | // 9 // व्यवहारे परित्यक्ते, नैपामेतानि लक्षणं / तथाच किं तनूभृद्भयः कथ्यं देवादिलक्षणम् ? // 10 // अर्वा ग्दृशां विबोधाय, तद् गम्यं लक्षणं वदेत् / वक्तृश्रोत्रोरितरथा, ध्यान्ध्यं स्यादनिवारितम् // 11 // किश्चात्मना // 16 // परित्यक्तारम्भसङ्गेन किं पुनः / प्रवृत्तिः क्रियते सङ्गवधयोर्येन यामो न बाह्यतः // 12 // अन्यच्चावृतवन्तः स्युः कषाया बाह्यसाधुतां / तृतीयास्तत्क्षये किं च, सा नोद्भवति निर्मला ? // 13 // संयोजनावियोगे कि, निर्वेदाद् भवतो विदः / संवेगाच भवेद्भाव-साधुतासम्भवो नहि // 14 // अत एवानुरक्तानां, संयमे देशतो व्रतं / भावना गृहिणां चाणुव्रतेषु संयमाश्रिताः // 15 // द्वितीयानां तृतीयानां, कषायाणां च बाह्यतः / देशसर्वव्रते वार्ये, तत्क्षये ते न किं तथा ? // 16 // सज्वलना ह्यतीचारापादकाः कोपनादिभिः / परेषूदयमाप्तेषु, मूलोच्छेदः कथं ननु ? // 17 // द्रव्ययोगानिरोधे ना-योगिता परमेशितुः / IM इति पश्यन् कथं लुम्पेद् ,व्यवहारं श्रियः पदम् ? // 18|| बुद्धवान् भरतश्चक्री, मुद्रिकायाः वियोगतः / मरुदेवी / जिनस्यर्द्धि वाणी वाऽऽलम्ब्य सिद्धिभाक् // 19 // अन्यलिङ्गो गृहस्थो वाऽवाप्नुयात् केवलं परम् / अधिके IM जीवितेऽवश्यं, चरणं बाह्यमाश्रयेत् // 20 // विचाऽत्यल्पान् स्वयम्बुद्धान् , प्रत्येकांश्च जिनागमात् / बहून् / सम्बोधितानन्यैन बुधो व्यवहारहा // 21 // जीवेकश्चिद्विषं पीत्वा, तथाभन्यतया पुमान् / सर्वे प्रियायुषो जीवाः, किं पित्रेयुर्विषं ननु ? // 22 // वधसङ्गो विषं घोरं, बाह्यतोऽपि न बुद्धिमान् / भवभीतस्ततस्तत्र, // // 16 // वर्तेतातोदितौ रतः // 23 // नालम्ब्यं मरुदेवादे तिं प्रत्येकबोधिनः / विदनिति बुधः किं स्याद्भवभीरुः / / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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