Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
View full book text
________________ आगमोद्धारककृषि भव्याभव्यप्रश्नः सन्दोहे. - // 23 // याचकरसवर्णादि, न तल्लक्षणदेहभाक् / स्कन्धानामसौ सद्भावो, न नास्तीत्युच्यते बुधैः // 25 // व्यावृत्या च यदि बयुर्लक्षणत्वममुष्य चेत् / न कदाचित्क्वचिचात्र, रसाद्या द्वथादयो नहि // 26 // अयुक्तं तर्हि नो किश्चिद्यन्नाणौ नैकतोऽधिकाः / रसाद्याः स्पर्शयुग्माच्च, नान्यः स्पशेऽधिको भवेत् // 27 // परमाणागेदितं / / जिनेश्वरमते यल्लक्षणं व्यापकं, सततं यच्छिशुबुद्धबोधविधये वर्मुनीशैः श्रुते / जगदे तच्छुभकारिकापदगतं मोहापहाराय तु, समतामाप्य परां मया शृणुत तत्स दस्तुबुद्धय नराः // 28 // इति परमाणुपञ्चविंशतिका // भव्याभव्यप्रश्नः (9) . सनत्कुमारदेवेन्द्र-सूर्याभविबुधादिभिः / श्रीवीरं प्रति यत्पृष्टं, स्वकीयात्मविशेषितम् // 1 // भव्यो वाऽहमभव्योऽस्मीत्येवमादि जिनागमे / प्रोक्तं वीरेण त्वं भव्योऽसीत्यादि स्पष्टवाक्यतः // 2 // ततश्च ज्ञायते राशि-द्वयं सूत्रकृतां मते / किं चायस्थानके प्रोक्तं, तृतीयेऽङ्ग गणेशिभिः // 3 // द्वैविध्यं भव्यसिद्धिकाभव्यसिद्विकगोचरं / जीवाजीवाद्यभिगमोपाङ्ग राशिद्वयं तथा // 4 // अभव्याः सूक्ष्मपर्याप्त-निगोदेम्यो मताः श्रुते / प्रज्ञापनाख्येऽनन्तनाश्चतुःसप्ततिके पदे // 5 // आवश्यके तु सम्यक्त्व-लाभे भवसिद्धिका अपि / इत्याख्योदिताः स्पष्टमभव्या यत् श्रुते मताः // 6 // ज्ञेयं केवलिनामेवैतत्तेनार्हन् सुरोत्तमैः / पृष्टः स्वविषये तेन, स्वभावोऽयं यदात्मनः // 7 // अत एवावदन् सिद्धसेनपादास्तु सम्मतौ / भव्याभव्यत्ववादो यदहेतुक इतीयते // 8 // चेतनाधारकत्वेन, नैष राशिस्मृतीयकः / जीवाः सर्वेपि यन्नित्यं, चैतन्यं शुद्धमादधुः // 9 // इति भव्याभव्यप्रश्नः // अष्टकबिन्दुः (10) यो वीतरागः सर्वज्ञस्त्रिकोटिशुद्धशास्त्रवाक् / शिवदो ह्याज्ञयाराद्धो, नमस्तस्मै परात्मने // 1 // स्नात्वा Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunfatnasuri M.S.

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105