Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 28
________________ फल आगमोद्वारककृतिसन्दोहे // 19 // आमया विश्वे, दृश्यन्ते द्विविधा यतः। सङ्कमेगोद्भवाः केचित्, केचित्सकमवर्जिताः // 22 // आयेषु सत्सु / मनुजैस्त्याज्यं तद्धाम सर्वथा / न ते यद्यपि सर्वेषां, तत्रस्थानां तनौ नृणाम् // 23 // आमयास्तदपि त्याग, कर्मआख्यातोऽस्य महर्षिभिः / अपायशङ्कासद्भाव, आदितस्तस्य वर्जनम् // 24 // युग्मम् // न चान्यस्थान विचारः सङ्क्रान्त, आदितो गदसम्भवः / निरीक्ष्याग्निं वसेकोज्यो, बालिशात्तत्र धामनि // 25 // गेहेशूरतमाः केचिन्न निर्गच्छन्ति तादृशात् / आदावालयतो द्रङ्गात्किं शौचन्त्यामयोद्भवे? // 26 // उपप्लुतं त्यजेद्धीमान्, सुखावासे वसेत्सुखम् / तत्रापि कर्मसामर्थ्याचेद्भवेद् व्याधिसम्भवः // 27 // तदा निरुपमं धर्म-स्मरणं हृदि सन्दधेत् / तावद्विज्ञेन भेतव्यं, यावन्न भयसङ्गमः // 28 // कर्मणां मे विपाकोऽयं, तन्न तत्कृतिरायतौ / हितदेति निराबाधं, श्रयेद्धर्म सुखावहम् // 29 // आत्तरौद्रे यतों मूलं, भवस्य दुःखदायिनः। इष्टानिष्टाप्तिविरतेरिच्छा हेतुस्तयोर्मता // 30 // आयुश्च चञ्चल दर्भप्रान्ताबिन्दुरिवानिशं / यान्ते मतिरसौ प्रेत्यगतेमूलमनश्वरम् // 31 // शोकतापादयोऽसातवेदनीयस्य कारणम् / दुर्गतौ पतितो जन्तुर्नान्यत्किमपि चेतयेत् // 32 // सातं पुरा भवेद् बद्धं, तदप्येतेन तद्भवे / सङक्राम्यतेऽसुखतया, विषेण दुग्धवृन्दवत् // 33 // अत एव श्रुते प्रोक्ता, ज्ञानाधाराधनान्तिमे / भागे भवस्य धन्यानां, दुष्करा चन्द्रवेध्यवत् // 34 // न चान्त्ये ज्ञानदृष्ट्यादे, राधना संस्कृति विना / संस्कारेपि सति न साराधना चलचेतसः // 35 // न च चित्तं स्थिरं स्थाने, सोपप्लवेऽङ्गिनां भवेत् / सोपद्रवस्य तद्धाम्नो, वर्जनं हितकृन्ननु // 36 // भयान् सर्वान् परित्यज्य, निर्गत्य साधवोऽभवन् / तेऽपि सोपप्लवं क्षेत्रं, त्यजेयुर्दूरतो पि हि // 37 // अन्यदास्तां चतुर्मास्यामपि जन्तुसमाकुले / कुएं रोगपराभूतो, स्थानेऽन्यस्मिन् समाक्रमः // 38 // ज्ञानादिवृद्धये देहपालन क्षेत्रसौस्थ्यतः / ते निर्दिष्टे यतः सूत्रं, यथालाभं वहेद्वपुः // 39 // उपप्लुते वसन् स्थाने, ज्ञानादेः पोषकः कथं ? / स्यात्ततोऽनार्यसंस्थाने, विहारोऽपि || // 19 // निवारितः // 40 // अप्राप्तकाले योधत्ते, आत्मनोऽनशनक्रियां / स चात्महा न शस्य: स्याद्रौद्रध्यानपरायणः // 41 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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