Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 27
________________ आगम् द्धारककृति सन्दोहे // 18 // 334 निवासविवेचनम् // 1 // नह्याधेयं विनाधारमाधारः क्षेत्रमुच्यते / निश्चयेनावकाशोऽदो, मण्डलं व्यवहारतः | // 2 // परिणामिन उच्यन्ते, जीवास्तत्र द्विधा नतिः / स्वाभाविका परोत्पाद्या, चेत्याद्या न विविच्यते॥ 3 // पराव देशद्रव्याद्धाभावमुख्या नतिं प्रति / कारणं येन द्रव्याद्याः कर्मोदित्यादिकारकाः, // 4 // ये फलजीवा द्रव्यक्षेत्रादि-सहायस्यनपेक्षिणः / ते विचित्राः सुरवनि-शलाकचरमाङ्गिनः॥५॥ तेषामायुर्यतो नवोपक्र विचार म्येतापवर्तनं / क्रियेतास्य न द्रव्याधैर्यत्तऽनपवर्त्यजीविताः // 6 // तथापि सर्वथा ते न, द्रव्यादिकस्य कुर्वते / उपेक्षां निर्गतौ द्वारावत्या द्राग्रामकेशवौ // 7 // अपरेषां ततो युक्त-तम आत्महितैषिणां / सोपद्रवस्य धाम्नो हि, त्यागः शास्त्रविदोदितः // 8 // कर्मणां फलदातत्वमव्याहतमथेष्यते। किमपेक्ष्यास्तदा द्रव्यक्षेत्राचा विबु // 9 // द्रव्याद्या एव चेद् दद्युः, सुखदुःखे शरीरिणां / आत्मवैस्तिया वस्तं, समस् शुभदर्शनम् // 10 // उपप्लुतं ततः स्थानं, वर्जयेदिति वाचिकं / अदृष्टवादिनां वः किं, युज्यते मतघातकम् ? // 11 // सत्यं लोभान्धितात्मानः, कर्मणां फलवत्तनुः / न सा परं विना द्रव्याद्यतत्प्रागेव निर्णीतम् // 12 // कर्मणो वर्गणाः सूक्ष्मा, नोपभोगक्षमास्ततः / न बाह्यद्रव्यप्रभृति-निरपेक्षं फलन्त्यमी // 13 // इच्छाकृतं यथा शेषं, न विना बाह्यपुद्गलान् / विकारादि तनौ दृष्टं, न चेच्छाप्यणुवर्जिता // 14 // बोधिका न परा मध्या, नच ते अन्तरा वचः। वैखर्या नच सा बाह्येन्द्रियाण्यते भवेद्विदे // 15 // विद्युच्छक्तिर्यथा यन्त्रे, प्राप्तापि बाह्यपुद्गलान् / नाविचा-H ल्य जनं स्वार्थ, बोधनाय भवेदलम् // 16 // स्नायवोऽपि तनौ केचिद्, ये स्वविकारसम्भवे / बाह्याणुविकृतेः / / ख्यान्ति, स्वसद्भाव विचक्षणाः // 17 // कानिचित्स्थूलताभानि, साक्षाद् द्रव्याणि भूतले। औषधीभूतकायानि, / फलदायीनि बाह्यतः // 18 // दृष्टसाम्येपि न फलं, समं जगति दृश्यते / तत्रादृष्टो बुधैः कश्चिद्धेतुः कल्प्यो / ह्यतीन्द्रिय: // 19 // तदेवादृष्टमित्येवं, सूक्ष्पैः कर्माणुभिर्महि / विना बाह्यगताणूनां-मपेक्षा साध्यते फलम् / // 18 // // 20 // अत एवौषधेर्योगः, प्रशस्यो गदसंगमे / तीर्थादेरातिश्चात्म-कल्याणकरणे पटुः // 21 // विचित्रा Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.

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