Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 26
________________ त्रिशिका .: / / क्रियाऽलसः // 24 // अनन्तैलेंभिरे बोधा,. निस्तीर्णश्च भवार्णवः / सङ्गत्यागान ते ज्ञानां व्यवहाराय किं / आगमो- क्षमाः ? // 25 // व्यवहारं समुच्छिन्दन् , तीर्थोच्छेदी मतो जिनः / इति मन्वान आतोक्ति-माश्रितस्तं त्यजेत् | लोकोत्तध्धारक कथम् ? // 26 // न चोद्यं यत् क्रिया गौणी, पस्था कथमुच्यते / समासे परतो द्वन्द्वे, वर्णाल्लघ्व्यन्यथा पुरः 1 रतत्त्वषदकृति // 27 // मोक्षो ज्ञानक्रियाभ्यां जैरुक्तस्तत्र लघुः क्रिया / नावाचि प्राक सति द्वन्द्वे, ज्ञानमभ्यचितं ततः सन्दोहे // 28 // आद्यं ज्ञानं क्रिया पश्चा-दित्युत्पत्तिकमाश्रितं / वच एतत् न 'यद् धर्मोऽखिलसंवरमन्तरा // 29 // करणे तृतीयाऽदिष्टा, मुख्यता तद् द्वयोरपि / उभयोः करणत्वेन, सम्यक चिन्तय चेतसा // 30 // परस्थं - // 17 // करणं ज्ञानं, सम्भवेन् मारुषादिवत् / अनुवृत्तेर्बुधस्यादौ, न क्रिया जातचिनथा // 31 // अगीतार्थोऽपि निश्राय, गीतार्थ मुनितापदं / नाव्रतः साधुताभाक स्याउ, जिनेन्द्रमपि संश्रितः // 32 // असंयतार्चनं विज्ञमतमाश्चर्यमन्तिमं / न क्वाप्यभ्यर्चना साधोरगीतार्थस्य गीयते // 33 // चरणे ज्ञानदृष्टयादेः, सङ्ग्रहायापवादता / पुष्टथै यमस्यं सा यन्नापोद्यतेऽधिकृतं विना // 34 // हीनो व्रतेन पूज्यः स्याद्, यत्प्रोक्तं तत्र कारणं / शुद्धप्ररूपणा भाव-साधुता ह्यपवादतः // 35 // श्रुतबोधेन चेत् पूजा-योग्यः स स्यात्तदा न किं / दशपूर्वी दधन्यूनां, स मिथ्यात्वे मुनिब्रुवः ? // 36 // द्रव्यपर्यायभावज्ञो, हिंसादेविरतो विभोः / आज्ञामनुसरन् शक्त्यो यच्छन् पूजापदं श्रुतात् // 37 // श्रीमजनेन्द्रवाणी प्रतिपदमनुयान् हापयनिन्द्रियाणा-मर्थेषु प्रेमरोषौ रतिमनुरचयन् / संवरेषु प्रकामं / गुप्त्या गुप्तं समित्या समितमरुहतां मार्गमुद्योतयन्तं, नत्वाऽचित्वा तदीये पदयुगकमले. लीन आनन्दमेतु // 38 // इति व्यवहारसिद्धिषट्त्रिंशिका // कर्मफलविचारः (7) नमत भव्यजना ? नतनाकिनं, विहितशुद्धपदाश्रितसंस्थितिम् / निहतजन्मजरामृतिकारणं, कृतसुधामP.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust G // 17 //

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