Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ आगमोद्धारककृतिसन्दोहे // 13 // न च जिनेन्द्रार्चा / साक्षात्संयमपुष्टयै वाधा च तदुपकृतेधरणे // 88 // संयमवाधाहतये स्यादपवादस्तपस्विनां I नियमात् / तन्न जिनेन्द्रार्चेषामपवादपदं भवेजातु // 89 // ज्ञानाद्यर्थ वर्षाकाले यमिनां विहरणं प्रोक्तं / / / निक्षेषयत्तत्संयमपो तस्य फलं मनसि निध्याय // 90 // पूजा जिनबिम्बानां संयमपुष्टथै न गण्यते क्वापि / शतकम् तत्सामान्येनोक्ता नैपा यमिना परपदेऽपि // 11 // न च वाच्यं बिम्बेषु ज्ञानादिगुणा न लेशतः सन्ति / तत्कथमेषामर्चा युक्ता तुर्यादिगुणगानाम् 1 // 92 // यस्मात्सर्वगुणाढ्या जिनास्तदारोपतोऽथ बिम्बेषु / तेषां पूजा नरसुरसुखाय मुक्त्यै च विज्ञेया // 93 // यद्वद् ब्राहम्ये लिप्य ज्ञानारोपेण गणधरसुधर्मा / व्याख्याप्रज्ञप्तौ नमतीह तथैषां न कि पूजा? // 94 // यद्वा यद्वदसाधः साधुपदेप्सुर्मदाऽर्च्यते भवतां / यद्वा यथा कलेवरमनगारस्या य॑ते विगुणम् // 95 // अज्ञान् सावधोक्त्या भीतिमुत्पादयन् जिनेन्द्रार्चा / परिहारयन् न किं त्वं परिहरसीज्यां स्वकीयां ताम् ? // 96 // आदिजिनेन्द्रोक्त्या किं मरकरिवेपों मरीचिरागत्य / न नतो भरतनृपेण ? सत्यं चेदत्र का शङ्का ? // 97 // न च वाच्यं नाभाद्या निक्षेपास्त्रय इहादृता द्रव्ये / पर्याये भावस्याऽभ्युपगमनं सैव तत्त्वपरः // 98 // उभयनयाश्रितमहन्म विबुध्येयमुक्तिरहीं न / आकण्ठामृतपीनो न विषोद्गार / नरो मुश्चेत् // 19 // तेनैकनयापेक्षं द्रव्यस्यावस्तुतां समुद्वीक्ष्य / मुह्येद् बुधो न यस्मात् स स्याद्वादश्रुतं वेत्ति // 100 / - इत्थं श्रीजिनराजरिवृषभादीनां जिनाज्ञारतः, सदृष्टिश्चतुरोऽपि शुद्धमनसा न्यासान् सदा मन्यते / सोत्रामुत्र जिनेन्द्रशासनमलं प्रोद्भाव्य लोकेऽखिले, निर्माश्याखिलकर्मबन्धनिचयं स्वानन्दमुग्रं भजेत् 101 // इति निक्षेपशतकम् // लोकोत्तरतत्त्वद्वात्रिंशिका (5) लोकोत्तरं जिन ! तवेदमुदीर्यते ज्ञैर्यच्छासनं प्रतिपदं निजशास्त्रराज्यां तित्सत्यमेव ग्रदमी परवादिनोऽत्र, II P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Guri Aaradhakrust

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