Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ || तत्तेषां नानय॑ किश्चिदंष्ट्र द्यापि श्रेष्ठम् // 13 // न घियते विनताऽङ्के यत्तन्मोहप्रभाववैषम्यात् / यद्धौतोऽपि / / आगमो- विकारो न तस्य नश्येत् श्रुतौधोक्त्या // 14 // आर्हन्त्यं कर्मोदयप्रभवमपि प्राज्यधर्मदेशनया। पूज्यतमं, निक्षेपद्धारक- म तद्वदेव हि जिनस्य सर्व बुधैज्ञेयम् // 15 // नातश्चक्री जिनपोऽष्टमादितप आतनोति देवार्थ / भरताद्यास्तु शतकम् कृति- वितेनु: पुण्यचयो यत्तथा नेषाम् // 16 // प्रतिमा जिनस्य वन्द्याः कथयति धर्म विभौ दश द्वे च / तिष्ठान्ति 'सन्दोहे / परिषदस्ताः समवसृतौ चतुर्मुखजिनाग्रे // 17 // प्राग्मुख उपविशति जिनः शेषदिशासु प्रतिकृतीस्तस्य। तनुते सुरस्ततोऽसावमरकृतः कथ्यतेऽतिशयः // 18 // . जिनजिनविम्बविशेषो यदि स्याल्लंशात् ततो न ता दिक्षु / संसद आयोजितकरकमलाः सुस्थाः स्थितिं कुर्युः // 19 // अर्हत्प्रतिमानां नतिपूजनसत्कारकारणाद् हेतोः / बोधेभिः शिवपदमुक्तं तत्साधकं न किम 1 // 20 // सुरलोकविमानेषु प्रभोरशेषेषु मूर्तयो नित्याः। धिकशतमाना: कल्याणायाचिंता देवैः // 21 // सम्यग्दृष्टिजीवो नाधर्म धर्मतापदं विद्यात् / तन्न सुराणां जिनबिम्बपूजनतो धर्मधीळा // 22 // प्रतिनगरं जिनचैत्यान्याद्योपाङ्गोपवर्णितानि किमु / नाद्राक्षीधुंध ! यचं . ब्रवीषि नूत्ना यतः प्रतिमाः // 23 // जङ्घाचारणविद्याचारणमुनयो नर्ति व्यधुः किं न ? / विम्बानां जिनराजां भगवत्यङ्ग स्फुटं विद्वन् ? // 24 // प्रतिषिद्धार्हत्प्रतिमानतिरानन्देन परमताश्रयणे / आद्योपाङ्गे चाम्बडमश्करिणोहस्व तन्मनसा // 25 // द्रौपद्या सूर्याभामरवन् महितानि जिनपबिम्बानि / श्रीज्ञातधर्मकथासु निमील्य नेत्रे तदृहख // 26 // दुग्धं न काष्ठघेनुर्दत्ते यद्वत्तथाऽहतो मूर्तिः। साधयति शिवं नैव, व्यर्था तन्मृत्तिरित्यज्ञः // 27 // जम्बूद्वीपाद्याकृतिमीक्षित्वा किं तद्धिय धत्से ? / किं च जरकादिचित्राण्युपदर्य ननोषि पापभियम् 1 // 28 // सत्यं वीरजिनं किमु निर्णयसि विनाऽऽकृति तदात्वेऽपि / शय्यम्भवार्द्रकुमरोद्रोधं किं नव चिन्तयसि ? // 29 // वनिताचित्रं मनसो विकारजनकं ततो भवांस्त्यजसि / तद्युतमालयमाप्तात् किं न 9 तथेशेक्षणात् शुद्धिः 1 // 30 // लोपित्वा जिनमूतीविधापयन् विम्बमात्मन: साक्षात् / भक्तानां दर्शनमुदे न लजसे

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