Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 02
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi
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________________ कृति / तदर्थ बुध्यते बोद्धास्तत्तद्रव्याद्यपेक्षया // 13 // सूत्रोक्तयोऽपि तन्त्रोक्ता द्रव्यादिसमाश्रिताः / नयद्वारे || आगमो विविच्यैतदाख्येयमिति युक्तिमत् // 14 // उपक्रमे नयद्वारं, प्रामाण्याय विवेचितं / नयद्वारेन तुर्ये तु, सर्व सूत्रं | निक्षेपध्यारक-मा विचार्यते // 15 // सर्वत्र नो जनाः सर्वेऽधिकार सेवितुं क्षमाः। तुर्ये ततो नयद्वारे, यथाश्रोत्रुपसंहृतिः // 16 // शतकम् इति नयषोडशिका // सन्दोहे निक्षेपशतकम् (4) चारित्रं नाज्ञातुर्दर्शनहीनस्य नैव सज्ज्ञानम् / एतत्रिकं विना न च मोक्षो भविनोऽपि जायेत // 1 // || निक्षेपैरर्थानां सर्वेषां स्यादधिगमात् जन्तोः / नयमानै निर्देशाधैः सदाद्यैश्च सदृष्टिः // 2 // भावा भुवने / द्वेधा, आराध्या इतरथा च चिद्वद्याः / समवसरणवत्ती जिन, आराध्यो भावदेवतया // 3 // यस्याराध्यो भावो || नामाद्यारतस्य वन्दनीयाः स्युः / तीर्थकरनामाचा निक्षेपास्त्रय इतो वन्द्याः // 4 // नन्वेवं चक्रथाद्याः सिद्धि- IN गतौ गामिनस्ततस्तेषां / नामादीन्याराध्यान्यतो हि नयात् किं न सर्वेषाम् ? // 5 // अथ भावानुसरणतो / नामाद्या वन्दनीयताधाम / तर्हि जिनाधिपतेर्न च्यवनाद्यनुमोदनीयतया ? // 6 // किंच शलाकापुरुषाश्चक्रथा / द्यास्तेन तत् त्रिकं वन्यं / नामादीनामेवं सति हर्याधर्चनं किं न ? // 7 // सत्य, द्रव्यत इष्टः शुद्धनयेनान्तिमो भवः सिद्धेः / पूज्यतया चक्रयाद्यास्तस्मिन् सिद्धा भवे नैव // 8 // सिद्धेर्वा याऽवस्था तां निक्षिप्यायेत् / सुधीस्तेषु / नैवांशतोऽस्ति दोषो यच्छेषं भावमनुसरति // 9 // अत एव जिनेन्द्राणां सिद्धत्वं प्रतिकृतौ / / समावेश्य / आरोप्यावस्थाद्वयमय॑ते विज्ञैः श्रुताधारात् // 10 // अर्हन्तोऽचिन्त्यपुण्यप्राग्भारास्तद्भवोऽखिलस्तेषां / आराध्यों विधिविद्भिस्तत् किश्चित् शङ्क नीयं न // 11 // च्यवने जिनस्य शक्रः स्तर्वाति शक्रस्तवेन तं // // 8 // तस्मात् / एवं जन्मनि नामान्वयोवहादिष्वपि ज्ञेयम् // 12 // कल्याणकानि पञ्च तु जिनस्य लोकानुभावतोऽानि / / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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